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________________ २१२ जैन-शिलालेख संग्रह ७ गणिशेखरमरुपोचुरियनन् नामत्ताल् वामनिलै निकुड्८ कलिअचिट्ठ नीमिर वैग्गैमलैक्कु नीडुळि इरुमरुडं नेल विढय९ कण्डोन् कुलै पुरियु पडै अरचर कोण्डाडु पादन गुणवीरमा मुनिवन् १० कुळिर वैयौक्कोत्रेय् (1] [ यह अभिलेख कोविराजाराजकेसरिवर्मन्, उर्फ राजराज-देवके २१ वें वर्षमें अभिलिखित है, तथा पोलि, अर्थात्, कावेरी नदीके स्वामी 'शोरन् अरमोरी' के इक्कीसवें वर्ष में (शब्दों में )। लेख बताता है कि किसी गुणवीरमामुनिवन्ने एक नहर या मोरी (Sluice ) गणिशेखर-मरु-पोर्चुरियन् नामके उपाध्यायके नामसे बनवाई थी। तिहमले चट्टानका उल्लेख "बैरंगैमलै" नामसे है।। [South Indian Ins., I, n. 66 (p. 94-95), t. & tr. ] बेलूरु-काड़-भन्न [शक ९४४-१०२२ ई.] [बेलूरु (कोत्तत्ति परगने )में, तालाबपर दुर्गा-देवीके पीछेके पाषाणपर] खस्ति समस्त-रिपु-नृप-कुम्मि-कुम्भ-दळन-पञ्चास्य समुदित-श्रीम.... ळ-विमुक्त-चोळ-भूपाळ..."लिन... जित-वीर-लक्ष्मी आश्रित-भक्त-मलापकर्षण भूमिसश्चरण जय-मूल-स्तम्भं श्रीमद् अ.."गङ्गमण्डलेश्वर प्रभुपद्म-युग्माशोक-भोगिकाश्रित-भ्रमद्-भ्रमर जित-रिपु संसित-समर-प्रताप राज्य-भार-धुरन्धरं अमात्य-समिति-विराजमानम् सत्यत्व-नाभि-कानीनम् समर-जित-भूप-जीव-प्रदर्नु अतिपूताचरणम् रिपु-खरकिरणम् ....." तिगाञ्जनेयं सौच-गाङ्गेयं शरणागत-यज्र-पञ्जरम् रिपु-का-कुञ्जरम् तन्म-रक्षामणि मन्त्री-चिन्तामणि विनेय-विळासम् श्रीमत्-पेगंडे-हासम्
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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