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________________ हेमावतीका लेख २०५ ये दोनों खम्भवत् (विशाल) मूर्तियाँ (विक्रम सं०. १०३८ और ११३५ [शि. ले. नं. २११]) दिसम्बर १८८९ में, श्वेताम्बर संप्रदायके मालूम पड़नेवाले मध्यवर्ती मन्दिरके पास मिली थीं। ' महमूद गजनवी (गजनीका रहनेवाला) के द्वारा मथुराका विनाश ई. सन् २०१८ में हुआ। उक्त प्रतिमा (सं० १०३८-९८१ ई. की) इस विनाशसे पहिलेकी स्थापित हुई हैं और शि. ले. नं. २११ की इस घटनाके करीब ६० साल बाद । आक्रामकने चाहे-जितना विनाश किया हो, लेकिन यह स्पष्ट है कि जैन लोगोंके पास उनके पवित्र स्थान विना किसी ज्यादा बाधाके बने रहे । ] [ Antiquities of Mathura (ASI, XX), p. 53, t. ] श्रवणबेलगोला-कमड़-भन्न । [वर्ष चित्रभानु-९४२ ई० (लू. राइस)] [जैन शि० ले० सं०, भाग १] श्रवणबेलगोला-संस्कृत तथा कपड़ [शक ९०४-९८२ ई.] - [जैन शि० ले० सं०, भा० १] हेमावती-काड़ [शक ९०४-९८२ ई.] [ हेमावतीमें, पूर्वकी तरफके खेतमें पाषाणपर ] उद्द-वळमेळेवरेम्बुदे । बिई मुन्नल्लि कडुपिनोळ बहु-विधदिन्द् । उद्द-वळमेळेदु मुरिगुम् । बिइमेनल् बलन्द पोरगनेळेवचेडङ्गम् ॥
SR No.010111
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Shastracharya
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year1952
Total Pages267
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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