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________________ "काममहाबणे चेइए" समिति पृ० २५१) और ६ "देवयं चेइयं पज्जुवासवाणिज्जे" (समिति पृ० २४५)। (७) उपाशकदशा सूत्र (१) "पुण्णभद्दे चेइए" (समिति पृ० १-१९)(२) "दइपलासए चेइए" (समिति १०१-१३-१८)(३) "कोट्ठए चेइए" (समिति पृ० ३१-३४-५३) (४) "गुणसले चेइए" (समिति पृ० ४८) इस सातवें अगसूत्र मे उपरोक्त चारों उल्लेखों में नियोजित किया हुआ चत्यशब्द व्यन्तरायतन को सूचित करता है और इनके बाद के दो उल्लेखो में उस शब्द का अनुक्रम से साधारण चैत्य और अरिहंत चैत्य अर्थ है। वे उल्लेख ये हैं, 'देवयं चेइय, (समिति पृ०४०)(६) "अरिहं चेयाणि वा, (समिति पृ० १२) अर्थात् इस अंग का एक भी उल्लेख चेत्य शब्द के मुख्य और प्राचीन अर्थ का ' व्यभिचरण नहीं करता। (८) अंतकृद्दशा सूत्र मे (१) "पुण्णभद्दे चेतिए भांडारकर इन्स्टीच्यूट लि० १०७९ १० १-१६-१८ (२) "गणसिलते चेतिते' पृ० १३-१४-१६-) (३) "काममहावणे चेतिए" (पृ० १६) ये उल्लेख भी व्यन्तरायतन के अर्थ को समर्थन करते हैं। (९) अनुत्तरौपपातिकदशा (१) "गुणसिलए चेतिए" (भाडा लि० १२० पृ० २७-२९) यह लेख भी इस प्रकार का है। (१०) प्रश्वव्याकरण सूत्र मे (१) "पुण्णभद्दे चेइए" (समिति पृ० १)(२) "भवण-घर-सरण-लेण-आवण-चेतिय देवकुल-चित्तसभा-पवा-आयतणआवसह-भूमिघर मडवाण य कए" (समिति १९३) इस प्रकारण में जिन २ निमित्तो से हिसा होती है उन सबका नाम निर्देश किया हुआ है, उसमें अन्यनामो के साथ २ चैत्य का भी उल्लेख किया हुआ है और साथ ही देवकुल का उल्लेख.होने से इस जगह का चैत्यशब्द चिता पर चिने हुये स्मारक को ही सूचित करता है। तदुपरान्त (२) "चेतियाणि" (समिति १० ९३ और (३) "तबस्सिकल-गुण-सघ-चेइय?" (समिति पृ० ११२) इस प्रकार के भी दो उल्लेख मिलते हैं। इन मे पहले उल्लेख मे चैत्यो को देकों के परिग्रह स्वरूप सूचित किया है। स्वर्ग मे भी श्री जिनभगवान की अस्थिया पहच गई है? याने वहा पर उनके स्मारक चैत्य का होना सभव है। दसरा उल्लेख चैत्य की रक्षा करना बतलाया है। इस प्रकार ये दोनो उल्लेख किसी धर्मवीर के स्मारक चिन्ह सिवा किसी अन्य अर्थ को सूचित नही कर सकते। (११) विपाकसूत्र मे (१) (पुण्णभद्दे चेइए पृ० १)(२) "गुणसिलाएचेइए" (पृ० १०३) इन दोनो उल्लेखो का चैत्यशब्द भी उसी व्यन्तरायतन को
SR No.010108
Book TitleJain Sahitya me Vikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi, Tilakvijay
PublisherDigambar Jain Yuvaksangh
Publication Year
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devdravya, Murtipuja, Agam History, & Kathanuyog
File Size6 MB
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