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________________ उस समताके ही गुम होने की नौबत आवे उस वक्त मात्र उसे स्थिर रखने के ___अर्थात् अहिसारूप महा उद्यानकी रक्षा करने वाले को उसके चारों ओर पांच बाडे करनी हैं, ओर वे इस प्रकार हैं- वाणीका सयम, मनका सयम, किसी वस्तु को उठाते रखते-याने उपकरणो को उठाते और रखते समय सावधानता और आलोकित खान-पान मे सावधानता रखना। इस उल्लेख में खान पान की सावधानता को जदा लिखा है, इससे आदान निक्षेपणमे उसका सम्बन्ध प्रतीत नही होता, इस कारण चौथी बाडका सम्बन्ध निर्ग्रन्थों के लिये औषधिके समान वस्त्र पात्र रखने की मनाई किसी भी आचार साहित्य में संभवित नही होती। दिगम्बरो के राजवार्तिक और ज्ञानार्णव आदि ग्रन्थो में आदान समिति और पारिष्ठापनिका समिति के नाम देखने मे आते है। एव उन पर विवेचन भी किया गया है, अतः वस्त्र पात्र के सम्बन्ध मे दिगम्बरो की मान्यता के बारे मे मैंने जो उपरोक्त कल्पना की है उसे विशेष पुष्टी मिलती है। राजवार्तिक मे २७१ पृष्ठ पर इस विषय में इस प्रकार उल्लेख मिलता है।। "वाङमनोगप्ति-इ-आदान निक्षेपण समिति आलोकित पान भोजनानि पच" ।।८।। उपकरणो के साथ (वस्त्र पात्रादिके साथ सगत और उचित मालूम देता है ज्ञानार्णवमे १९० वे पृ० पर इसी विषय को इस प्रकार बतलाया है "शय्याssमनो-पधानानि शास्त्रोपकरणानि च। पूर्व सम्यक् समालोच्य प्रति लिख्य पुन पुन ।।१२।। गृह्वतोऽस्य प्रयत्नेन क्षिपतो वा धगतले। भवत्यविकला साधोरादान समिति स्फुटम्" ।।१२।। अर्थात् शय्या आसन, तकिया, शास्त्र की हिफाजत करने वाले उपकरण, इन सबको अच्छी तरह देख भाल कर-जमीन को साफ देखकर रखते हुये और उठाते हुए साधु आदान समिति को अविकलतया पाल सकता है, इसी प्रकरण मे व्यत्सर्ग समिति-निक्षेपणासमिति का भी उल्लेख है। उपरोक्त ज्ञानार्णवका उपकरणो से लगता हवा उल्लेख शास्त्रोपकरणो का भी निर्देश करता है, तब फिर शारीरिक उपकरणो-सिर्फ औषधिवत् उपयोग में आने वाले वस्त्र पात्र का एकान्तिक निषेध किस तरह किया जाय? वर्धमान के नामसे चलनेवाले प्रवचन में, उसमे निर्दोष ब्राह्य सामग्री में किसी भी जगह एकान्तता का सम्भव नही होता, क्योंकि इस प्रवचन.का नाम ही अनेकान्त दर्शन है। तथापि यदि वर्धमान के नाम से प्रचलित बही खाते में उनके 'मुनीमने इस तरह की ब्राह्म सामग्री में भी कही पर एकान्तता का अंक समिश्रित कर दिया हो तो मैं कम से कम यह मानने के लिये तैयार नहीं हैं कि उस बही खाते का वहिवट वर्धमानानुगामी है। चाहे वह श्वेताम्बरों का हो
SR No.010108
Book TitleJain Sahitya me Vikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi, Tilakvijay
PublisherDigambar Jain Yuvaksangh
Publication Year
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devdravya, Murtipuja, Agam History, & Kathanuyog
File Size6 MB
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