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________________ वृक्ष की छाया पर्याप्त है, परन्तु ऐसी सादी प्रथा को पसंद न करने वाले हमारे ग्रन्थकारो ने उसके बदले चादी, सोने और रत्नों के तिगडे की रचना करने में कैसी कुशलता का परिचय दिया है !!! मुझे तो यह एक बिल्कुल विचित्र बात मालूम देती है कि उपदेशक भी किले में घुसकर उपदेश देने होंगे या उन्हें किसी के डर से किले मे बैठकर उपदेश देना पडता होगा? इस प्रकार उपदेश और किलों के बीच किसी तरह का सम्बन्ध न होने पर भी उन्होंने उपदेश के समय जो तीन किले, कितनी एक वापिकाये बावडिया एवं कितनेक नाटक भी बना दिये हैं और खुद भगवान महावीर को भी चतुर्मुख बना दिया है, उनकी इस शिल्पकला के सामने विश्वकर्मा को भी शर्माना पडा होगा। भगवान महावीर सर्वज्ञ थे इस बात को हम सब मानते हैं, इससे हम उनकी सर्वज्ञता का लाभ लेकर अपने माने हुये और प्रसाद्य पुरुषों के नामोल्लेख उनके मुख से बनावटी रीति से करावे यह कितना अनुचित कार्य है और भगवान महारीर की आशावना करने वाला है इस बात का विचार विचारक स्वय कर सकते हैं। मैं यह कहूँ कि उस महापुरूष ने अपने पवित्र मुख से मेरे पिता का जीवन चरित्र कथन किया था। आप कहे कि महावीर ने भी हमारे सगे-सम्बन्धियो को याद किया था तो क्या यह सब कुछ असंभवित और निषेध्य नही है? इस तरह की निर्मूल बाते हमारी मूर्खता का ही परिचय देती हैं। श्रीमचद्रसूरि ने अपने बनाये हुये वीर चरित्र मे भगवान वर्धमान के मुख से राजा । कुमार पालकी प्रशंसा करा कर उसे खुश करने का जो लाहा लिया है वह ऊपर लिखी हुई प्रशमासे कुछ कम नही है । इस प्रकार के अनेक कल्पित उल्लेखो से भगवान महावीर के चरित्र की ऐतिहासिकता मे कितनी अधिक क्षति आई है? इस का जवाब एक इतिहासज्ञ विचारक के सिवा अन्य कौन दे सकता है? महावीर का माहात्म्य बढाने के यिले उनकी नग्नता के बदले वस्त्रता कहे तथा सुवर्ण, मणि और हीरा जवाहरात के तिगडे से ही या देव देवियो की दौडधूप से ही उनके माहात्म्य का उत्कर्ष होना समझे तो माहात्म्य को समझने का यह प्रकार सर्वथा अनुचित और विपरीत है, एव आडम्बरी सामग्री द्वारा एक परम त्यागी यीगी की परीक्षा करने के समान * हास्यास्पद है। इसके उपरान्त ऐसी अन्य भी बहुत-सी बाते हैं जिन से हमारा जो चरित्र विभाग ऐतिसासिक गिना जाता है वह भी पुराण जैसा हो गया है यह कुछ कम खेद की बात नही है। यहा पर मै प्रकृत विषय का मात्र एक ही उदाहरण देकर अब कल्पित कथाओ की ओर आप का ध्यान खीचूँगा । वीरचरित्र में आई हुई भगवान महावीर के मुख से कुमार पालकी प्रशसावली बात मात्र हेमचन्द्रसूरि रचित बीरचरित्र मे ही मिलती है अतएव उसे मैं कल्पित मानता हूँ। * "देवागम नभोयान- चामरादिविभूतय । मायाविष्वपि दृश्यन्ते नाऽतस्त्वर्मास नो महान्" ।। CC
SR No.010108
Book TitleJain Sahitya me Vikar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi, Tilakvijay
PublisherDigambar Jain Yuvaksangh
Publication Year
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devdravya, Murtipuja, Agam History, & Kathanuyog
File Size6 MB
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