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________________ ग्रन्थ-सशोधन ] [ ६८३ पृष्ठ पक्ति अशुद्ध शुद्ध आदमियो के नामो के बीच में दिये हैं। अगर अमरकोश के कर्ता दि० जैन होते तो वे नग्नता (दि० त्व) की ऐसी अवमानना कभी नहीं करते। भारतीय पात जल अमृत चन्द्र उससे वैज्ञामिको के ३२८ ३६४ ३६४ २३ २० २२ २३ अन्तिम भारतीत पातजाप अमतचन्द्र उसने वैज्ञानिक के देखिये ४०१ २४ कल १२२ ४३७ ४७५ ४७७ ४७७ ४७८ १० २३ २३ २ मधुर दोषेरपेन सम सम जन तियग ४७६१ ४७६ १२ काल मधुर दोषरपेत सम बन तिर्यग ससी तदनतर च साक्षर धर्मसग्रह सर्वम सर्वज्ञस्य स्यात गृहस्थावस्या ४८० सज्ञा तदनतर च आक्षर सग्रह सर्वत्र के सवज्ञस्य त्यात ग्रहस्थावस्था ४८० १८ ४८२ टिप्पणी ४८३ २ ४८३ ५ ४८४६ ४८४
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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