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________________ [ ★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ i उन्होने पूजा मे चौथे स्थान मे चौथे तीर्थंकर सुबाहु की जन्मनगरी बताई है । यहा नगरी मे ही गलती की गई है क्योकि यह नगरी सीतोदा के उत्तर तट पर है, इसी तट पर विजया नगरी है जो पूजा मे युग्मधर तीर्थंकर की पहिले जन्म नगरी 'बताई जा चुकी है। एक ही तटपर दो तीर्थंकरो की दो जन्म नगरिये नही हो सकती हैं। क्योकि विद्यमान २० तीथंकरो मे से किसी एक तीर्थंकर का जन्म एक ही तट पर हुआ करता है ऐसा शास्त्र नियम है । ६७८ ] 〃 1 पूजा मे जो नगरियो के नाम ( अयोध्या को छोडकर ) और उनके साथ तीर्थंकरो के नाम लिखे हैं, उनको हम यदि सही मानकर चले तो शास्त्रानुसार प्रथम सीमन्धर स्वामी की जन्म नगरी पुण्डरी किणी नगरी सीता के उत्तर तट पर है जिस 'पर तो कोई विवाद ही नही है । ' 1 If 1" 7 दूसरे युग्मंधर की जन्म नगरी विजया को सोतोदा के उत्तर तट पर माननी होगी। तीसरे बाहु की जन्म नगरी सुतीमा को सीता के दक्षिण तट पर माननी होगी और शेष बचा सीतोदा का दक्षिण तट उस पर चौथे - तीर्थंकर सुवाहु की जन्म नगरी (1 वीतशोका) मानती होगी । सरित् देश मे वीतशोका का उल्लेख उत्तरपुराण- पर्व ६२ श्लोक ३६ मे आचार्य गुणभद्र ने भी किया है। बाकी १६ तीर्थंकरों को जन्म नगरिय और उनके स्थान भी इसी तरह इसी क्रमसे व बाकी -४ मेरु 'सम्बन्धी विदेहो मे समझ लेना चाहिये। । + ? - 1. 1 | , J विनयविजय कृत सस्कृत के लोकप्रकाश नामक श्वेताबर ग्रन्थ के सर्ग १७ श्लोक ३५३६, ५२, ५५ मे सीमधरादि ४ - 1 L
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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