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________________ ' ५५ ļ 1 1 7. पं० जौहरीलालजी रचित विद्यमानविशति तीर्थकर पूजा पर विचार | छपी हुई यह पूजा दो तरह की हमारे समक्ष मौजूद हैं । एक के कर्ता टक निवासी कवि थानसिंहजी अजमेरा है । यह पूजा वि० स० १६३४ मे बनी है और दूसरी के कर्ता कवि जौहरीलालजी जयपुर वाले है । जिसको उन्होने विक्रम स० १६४६ मे बनाई है । दोनो ही पूजाये हिन्दी छन्दो मे लिखी गईं हैं और भादवा पषण मे अक्सर पढी जाती हैं । इनमे से थानसिंहजी कृत पूजा में तो विदेहक्षेत्रो के विद्यमान २० सीर्थंकरो के माता-पिता, चिह्न और जन्म नगरियो के नाम मात्र बताये हैं । किन्तु जौहरीलालजी ने स्वरचित पूजा मे ये सब बताते हुये जन्म नगरियों के नामों के साथ उनके स्थान भी लिखें हैं कि-अमुक नगरी, अमुक विदेह मे सीता या सीतोदा नदी के अमुक तट पर स्थित है । इन तीर्थंकरों का कोई विशेष चरित्र ग्रन्थ तो देखने मे नहीं आया है । फिर न जाने इन पूजा पाठोमे उनके माता-पिता चिह्न आदिको का कथन किस आधार पर किया गया है। खैर, बाधक प्रमाण मे वे भी सब माने जा सकते हैं । परन्तु जौहरी -
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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