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________________ [ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ की मुखकी पूजा नही होती सिर्फ चरणो की ही होती है" यह भी गलत है, क्योकि भगवान् का सर्वांग ही पज्य होता है। इसी से उनके सर्वांग का अभिषेक होता है [सिर्फ चरणो का ही नहीं] तथा उनके मस्तक पर तीनछत्र और मस्तक के पीछे भामण्डल लगाये जाते है और उन पर चमर ढोले जाते हैं और उनके मुख से निकली वाणी जिन वाणी के रूप से पूजी जाती है अत वीतरागियो की सिर्फ चरण पूजा ही बताना अयुक्त है। इससे आपकी परिभाषाये सब बडी बेतुकी हैं यह सिद्ध होता है। आप विघ्न निवारणार्थ प्रतिष्ठा मे रागी द्वषी देवो की स्थापना करना बताते है, तो फिर पुलिस चौकीदारो आदि का इन्तजाम क्यो किया जाता है ? शायद इसलिए कि पुलिस आदि से होने वाली सुरक्षा जहां प्रत्यक्ष है, वहाँ शासन देवों की तो कोरी कल्पना है। कल्पना के पीछे कौन अपना घर लुटाये, इससे जाना जा सकताहै कि-शासनदेवो मे उनके भक्तो तक को कितना विश्वास है । किसी ने पूछ पकड़ा दी सिर्फ इसीलिए अब उसे छोड़ना नही चाहते अथवा अविवेक के प्रकट होने का डर हो, बाकी निस्सारता तो सबके हृदय मे स्पष्ट अकित है । शासनदेव आते हुए दिखते नही, आह्वानन पूजन करने पर भी उन्होने किसी प्रतिष्ठा मे आकर विघ्न निवारण किया हो, ऐसा कही देखा नहीं गया। कुछ वर्षों पहिले धुआ [ राजस्थान ) ग्राम मे पचकल्याणक प्रतिष्ठा मे ऐसा अग्निकाड हा कि देखते-देखते हजारो रुपयो के चन्दवे, डेरे तम्बू आदि जलकर राख हो गये किसी शासनदेव ने आकर कोई सहायता नहीं की जबकि वहां इन देवो की पूजा आराधना की गई थी। अत. सब प्रपचो को छोड़कर एकमात्र पच परमेष्ठी का ही आराधन करना चाहिये
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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