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________________ f ६५५ उद्दिष्ट दोष मीमासा ] इसमे लिखा है कि " जो केवल निग्रंथ जैनसाधु आयेंगे उन सबो के लिए देऊगा ऐसा उद्देश्य करके बनाया भोजन औद्देशिक कहलाता है ।" यहा किसी व्यक्ति मुनि के लिए नहीं लिखा है । किन्तु सभी मुनि मात्र के लिए बनाए भोजन को उद्दिष्ट बताया है । ऐसा ही उद्दिष्ट का लक्षण भगवती आराधना मे भी लिखा है । वह उद्धरण ऊपर हम वसतिका की चर्चा मे लिख आए है । इसी तरह हमने ऊपर आचारसार का पद्य उद्धृत किया है उसमे किसी एक खास मुनि के लिए और सभी मुनि मात्र के लिये दोनो ही के अर्थ बनाने को उद्दिष्ट बताया है । यदि मुनि सामान्य के निमित्त बनाये भोजनादि को अतिथि के लिए देना विधि मार्ग होता तो अमितगति और आशाधर यह नही लिखते कि - "दाता अपने लिए बनाए गए भोजनादि मे से अतिथि को दे ।" ये उद्धरण भी ऊपर लिखे जा चुके हैं । इससे यही फलितार्थं निकलता है कि- दाता चाहे किसी खास मुनि के निमित्त से बनावे या मुनि समुदाय के निमित्त से वनावे दोनो ही हालतो मे वह उद्दिष्ट है । एक बात यही भी समझने की है कि - जैन मुनियो की सिहवृत्ति होती है । (देखो मुलाचार अ० ६ गा० २६ सिंहा इव नरसिंहा ) उनको आहार की उतनी परवाह नही रहती है । जितनी कि अपने आचार नियमो की रक्षा की रहती है । इसलिए कोई श्रावक यह समझकर मुनियो को आहार देता हो कि- आहार सदोष हो तो हो हमारे दिये आहार से मुनि भू तो नही रहेगे । और उससे हम को भी पुण्यबन्ध होगा ही ।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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