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________________ दयामय जैन धर्म और उसकी देव पूजा ] [ ६२१ द्रव्यों के माध्यम से बिना पढा लिखा भी यह सब हृदयगम कर सकता है । इसी से पूजा के प्रारम्भ मे पचकल्याणको का सर्वप्रथम अघं चढाया जाता है । २४ तीर्थकर पूजा मे भी प्रत्येक तीर्थंकर की पात्रो कल्याणक की तिथियो का अलग-अलग अर्ध चढाया जाता है । प्रत्येक जिनपूजा में भी अष्ट द्रव्यो द्वारा पचकल्याणक को ही प्रदर्शित किया जाता है । देखो-गर्भं कल्याणक - अत्र अवतर अवतर सवोषट् आह्वाननेम् अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ ठ स्थापनम् जन्मकल्याणक – अत्र मम सन्निहितो भव, सन्निधि करण जल, चदन, अक्षत, पुष्प दीक्षा कल्याणक - नवेद्य ( आहार दान का प्रतीक ) ज्ञान कल्याणक - दीप (केवल ज्ञान का प्रतीक ) मोक्ष कल्याणक - धूप, फल, अष्ट कर्म नष्टकर मोक्षफल प्राप्ति ) 2 इस तरह इन्द्रिय विषय कपायो से रहित वीतराग भगवान् के साथ अष्ट द्रव्यो की संगति सार्थकता बैठ जाती है और व्यास माली के पारिश्रमिक रूप मे अष्टद्रव्यों की उपयोगिता भी वन जाती है । इन ८ द्रव्यो को चढाते वक्त पूजक को सदा ऊपर लिखे अनुसार पंचकल्याणक रूप में तीर्थकर लीला [ जिन-जीवन चरित ] को अच्छी तरह हृदय में बिठा लेना चाहिये । यही अष्टद्रव्य - पूजन रहस्य है । अष्टद्रव्यों को जिनेन्द्र के आगे ही चढाना किसी मी द्रश्य को जिनेन्द्र के ऊपर नही क्योकि वे वीतराग हैं [ देखो - मोक्षमार्ग प्रकाशक पृ० ] यही शालीनता और विवेक है । ०००
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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