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________________ साधुओ की आहारचर्या का समय ] [ ५६५ होता है । और अनगार धर्मामृत मे मुनियो की पूरे एक दिन की दिनचर्या बताते हुये (अध्या०६ श्लोक ३४ से ३६ तक उनमे के ३ श्लोक ऊपर उद्ध त है) सूर्योदय से सूर्यास्त तक का जो कार्यक्रम दिया गया है उसमे भी सिर्फ मध्याह्न की (१२ बजे की) आगे पीछे की दो-दो घडी कुल ४ घडियो मे ही भिक्षा लेने का कथन किया है। दिन के शेष समयो मे भिक्षा लेने का कही जिक्र ही नहीं है। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि मुनियो को न तो दिन मे २ बार गोचरी के लिये उतरने की शास्त्राज्ञा है । और न लगभग मध्याह्न काल के अतिरिक्त अन्य काल मे भिक्षा लेने की णास्त्राज्ञा है । यह कथन इतना स्पष्ट लिखा हुआ है कि उसमे तर्क वितर्क करने की कोई गु जाइश हो नहीं है। नही मानने वालो का तो कोई इलाज नहीं । जैसे अनगार धर्मामृत मे मध्याह्न की पूर्वोत्तर की दो-दो घडियो मे भिक्षा लेने का कथन है, वैसा ही मूलाचार मे भी है । जैसा कि आर उद्धरण दिया गया है । वहा लिखाहै कि-मध्याह्न की देव-वदना करके मुनि गोचरी पर उतरे। इसका मतलब चूडीवालजी यह निकालते है कि "मध्याह्न की देव-वन्दना किये बाद ४ बजे गोचरी पर उतरे । यह गोचरी का दूसरा टाइम है।" इस सम्बन्ध मे हम आपसे पूछते है कि-मूलाचार के टीकाकार का अगर यही अभिप्राय होता तो वे मध्याह्न से आगे ४ वजे तक का कार्यक्रम बतलाते सो उन्होने बतलाया नहीं। इससे तो यही प्रगट होता है कि टीकाकार का आशय यहा देव चन्दना करने के अनन्तर लगते ही गोचरी पर गमन कराने का है । और आपने इसे गोचरी का दूसरा टाइम बताया सो इस
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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