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________________ साधुओ की आहारचर्या का समय ] [ ५८७ तक अतिथि दान को एक दिन में दो बार देने का कही उल्लेख नहीं किया है। इससे सिद्ध होता है कि मुनि की गोचरी का टाइम एक दिन में दो बार मानना शास्त्र सम्मत नही है। लोगो ने मनघढन्त मार्ग निकाल लिया है। एक दिन में दो भाजन वेला कहना यह लौकिक जन साधारण की दृष्टि से है न कि मुनियो की अपेक्षा । क्योकि मूलाचार प्रथम अधिकार गाथा ३५ मे जहाँ यह वर्णन किया है वहाँ टीकाकार ने लिखा है कि "अहोरात्रमध्ये द्व भक्तबेले तत्र एकस्या भक्त बेलाया आहारग्रहणमेकभक्तमिति ।" यहाँ टीकाकार ने दिन-रात मे दो भोजन बेला बताई हैं। मुनि दो बार आहार लेते नही । अतः टोकाकार ने यहां आम जनता को लक्ष्य कर (न कि मुनियो को लक्ष्य कर) दो भोजन बेला वताई हैं। तात्पर्य यह है कि आमतौर पर लोग दिन रात में दो बार भोजन करते हैं। उनमे से मध्याह्न मे एक बार भोजन करना एक भक्त कहलाता है। ऐसा करने से एक अहोरात्र मे दो बार की जगह एक बार ही भोजन होता है और एक बार का त्याग हो जाता है । इसेही एक वेला का यानी एक टाइम का त्याग कहते है। इसी दृष्टि से मुनियो का एक उपवास चतुर्थ नाम से कहा जाता है। उसमे चार बार के भोजनो का त्याग हो जाता है। वह ऐसे किधारणे पारणे के दिन का एक-एक बार और उपवास के दिन का दो बार इस प्रकार कुल चार बार का भोजन छूट जाता है। और बेला मे ६ वार का, तेला मे ८ बार का भोजन छूट जाता है जिससे वे षष्टोपवास, अष्टोपवास कहलाते हैं । प अजित कुमार जी और व० चूडीवालजी का यह लिखना कि-"मध्याह्न से पहिले भिक्षाकाल न मानने पर मुनियो के बेला-तेला की पष्ठोपवास अष्टोपवास सज्ञा ही नहीं बन सकतीहै।" इन लोगो
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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