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________________ साधुओ की आहारचर्या का समय ] [ ५८५ ३ घडी पहिले का काल छोडकर मध्य काल भोजनकाल माना जाता है। उसमे तीन, दो और एक मुहूर्त का काल क्रमश अघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट है) इन सब मे समुच्चय सामान्य कथन किया है । मुनि श्रावका का भेद न करके जो भी रात्रि भोजन के त्यागी है उन सवके लिए कहा है कि उनका भोजनकाल सूर्य के उदयास्त की तीन-तीन घडी छोडकर मध्य मे है । इस सामान्य कथन से यह पता नहीं पड़ता कि मुनि का खास भिक्षा समय कौनसा है ? तदर्थ ग्रन्थकार ने खास मुनियो के लिये अलग से कथन किया कि उनकी भिक्षा-बेला मध्याह्न मे है, जैसा कि पहिले मूलाचार का प्रमाण देकर बताया गया है अगर उदयास्त की तीन-तीन घडी के अलावा शेप सारा ही दिन मुनियो के भिक्षाकाल का शास्त्रकारो को अभीष्ट होता तो उनको विशेष या अलग कथन 卐यही कथन और भी स्पष्टता के साथ मूलाचार म० १ गाथा ६५ में बताया है, देखो "उदयत्थमणे काले णालीतिय वज्जिय म्हि मज्झम्हि" ॥ इसी के अनुसार अनगार धर्मामृत अ० ६ श्लोक ६२ मे लिखा है। 0 अथवा एक समाधान यह भी है कि- यहाँ "मज्झम्हि" (मध्ये) पद का अर्थ दिन का मध्य =दोपहर (मध्याह्न) लेना चाहिये । संस्कृत टीकाकार ने भी सर्वत्र 'मध्य' पद देकर दिन के मध्य (मध्याह्न) को ही सूचित किया है । दिन के आदि अन्त की तीन-तीन घडी छोडना यह सामान्य कथन है तथा शेषकाल का मध्य यानि दोपहर यह विशेप कथन है । सामान्य से विशेष कथन बलवान होता है (मदा सामान्यतो नून विशेषो बलवान् भवेत्) अतः
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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