SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 581
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधुओ की आहारचर्या का समय ] [ ५८३ समाप्त कर तिस पीछे दोय घडी दिन चढे श्रुतभक्ति-गुरुभक्ति पूर्वक स्वाध्याय ग्रह सिद्धात सम्बन्धी वाचना पृच्छनादि करै । मध्याह्नविषै दोय घडी बाकी रहै तब श्रुतभक्ति पूर्वक स्वाध्याय समाप्त करै । यथावसर मलमूत्र का त्याग करि आवै । शुद्ध होय मध्याह्न की देव वन्दना करै। आहार के निमित्त नगरादिविर्षे च्यारि हाथ धरती शोधता गमन करै।" इस प्रकार शास्त्र मे जहाँ भी गोचरी का वर्णन आया है वहां मध्याह्नका ही समय लिखा है, किसी भी शास्त्र मे पूर्वाह्न नही लिखा है। इसके विरुद्ध श्री चूडीवालजी ने आदिपुराण का श्लोक देकर गोचार बेला का अर्थ प्रात काल बताया वह मिथ्या है, उसका प्रात काल अर्थ होता ही नही है । यथा सती गोचार बेलेयं दानयोग्या मुनीशिनाम् । तेन भर्ने ददे दानमिति निश्चित्य पुण्यधी ॥७॥ [पर्व २०] इसका सही अर्थ ऐसा होता है " यह दान देने योग्य मुनियो की गोचरी का उत्तम समय है । ऐसा निश्चय कर पवित्र बुद्धि वाले श्रेयास कुमार ने भगवान को दान दिया।" ___ इस श्लोक मे आये गोचारबेला का अर्थ हिन्दी अनुवादक १० पन्नालालजी साहित्याचार्य ने प्रात काल किया है। आपके अनुकूल होने से ही शायद आपने भी उस अर्थ को मान लिया है । परन्तु गोचार का प्रात काल अर्थ करना गलत है। टिप्पणीकार ने अशनवेला अर्थ किया है वह ठीक है । आपको
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy