SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 571
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ साधुओं की आहारचर्या का समय ] [ ५७३ अब हमे यह देखना है कि - मूलाचार की टीका मे जो मुनियो का भिक्षा का काल मध्याह्न मे बताया है उसका सर्मथन अन्य जैन ग्रन्यो से भी होता है या नही । सबसे प्रथम हम सोमदेव कृत यशस्तिलक चपू का प्रमाण पेश करते हैं। उसके प्रथम आश्वास के पृष्ठ १३४ ( तुकारामजावजी द्वारा प्रकाशित ) पर लिखा है कि तमुपसद्य निषद्य च निर्वार्तित मार्ग मध्याह्नक्रिय समाकलय्य च परिणतकाल महर्दनमखिल श्रमणसघ लोचनगोचरारामेषु ग्रामेषु विश्वाणार्थमादिदेश ।” < उस पर्वत पर सुदत्ताचार्य सघ सहित जाकर स्थित हुये । उन्होने ईर्यापथशुद्धि और माध्याह्निकक्रिया - देववन्दनादि से निवृत्त हो, अहर्दल कहिये दिन के अर्द्ध भाग को मुनियो का भोजन काल ज्ञात करके सब मुनिसंघ को आहार के लिये आसपास के ग्रामो मे जहां के कि बगीचे दिखाई दे रहे थे, जाने का आदेश दिया । यहाँ भी दिन का अर्द्ध भाग और मध्याह्न की देववदना के बाद का समय लिखकर सोमदेव ने इस विषय को अच्छा स्पष्ट कर दिया है । पद्मपुराण पर्व ४ मे लिखा है कि अन्यदा हास्तिनपुरं विहरन् स समागत । अविशच्च दिनस्यार्द्ध गते मेरुरिव श्रिया ॥६॥ अर्थ- जो शोभा से मेरुपर्वत के समान जान पड़ते थे ऐसे भगवान् श्री ऋषभदेव विचरते हुए किसी दिन आहार के अर्थ मध्याह्न के समय हस्तिनापुर मे आये। यहा भी दिनार्द्ध का
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy