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________________ श्रावक की ११वीं प्रतिमा । [ ५५५ साथ नहीं रहते, न गुरु के आदेश का ही पालन करते है। अकेले स्वच्छन्द विचरते है। शास्त्राज्ञा को ताक में रखकर अपने भक्तो के बल पर मन आवे सो करते है। कहने को दे क्षुल्लक है पर लौंचादि करके एक तरह से वे वस्त्रधारी मुनि बन गये है। और उनके भक्तजन उनको मुनि की तरह ही मानते पूजते हैं । भिक्षा के लिये पात्र रखना तो आजकल कतई उठ ही गया है । इस प्रकार आज के ११वी प्रतिमाधारी क्षुल्लक पूर्वाचायो के आदेश तो दूर रहे वसुनन्दी के मत की भी अवहेलना करते दिखाई दे रहे हैं। __ इन सब अनर्थो की जड आज के अविवेकी श्रावक हैं। और वे काफी संख्या मे है । तथा इस काम मे स्वार्थी, खूशामदी, मानबडाई के भूखे कुछ पण्डित भी साथ हो जाते है जिनकी वजह से प्राय त्यागियो की चर्या दिनोदिन विगडती जा रही है और ताम पर भी समाज मे उनका काफी बोलबाला है। और इसी से वे अपने सुधार का कोई प्रयत्न नही करते हैं। जैसे किसी को भून लग जाता है तो वह बावला होकर अपनी सब सुधबुध खो बैठता है। वही हालत प्राय आज के श्रावकोकी नजर आती है उनके सामने भी कोई कैसा भी मुनि या क्ष ल्लक,ऐल्लक का वेष नजर आताहै तो उसके शिर पर ऐसा भत सवार हो जाता है कि- उस सयम न ये शास्त्र की सुनते है और न किसी विद्वान् की। एक तरह से स्वच्छन्द निरकुश होकर मनमानी करने लगते हैं और झगडने लगते हैं। ऐसी ही स्थिति को परिलक्षित कर यशस्तिलक से सोमदेव ने कहा है
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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