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________________ श्री सीमधर स्वामी का समय ] [ ५३१ जैनी भाई यह समझे बैठे है कि - मुनिसुव्रत स्वामी के तीर्थकाल से ही सीमधर भगवान् का अस्तित्व चला आ रहा है । महसेनकृत - प्रद्युम्नचरित ( ११ वी शती ) पृष्ठ ५२-५३ मे भी प्रद्युम्न का हाल सीमधर स्वामी से ही जानना लिखा है । किन्तु आचार्य श्री गुणभद्र प्रणीत उत्तर पुराण मे इससे भिन्न कुछ और ही कथन मिलता है । विदेहक्षेत्र मे जाकर नारद जी ने जिन तीर्थंकर केवली से प्रद्य ुम्न का पता लगाया था । वह कथन उत्तर पुराण में इस प्रकार है नारदस्तत्समाकर्ण्य अणु पूर्व विदेहजे । नगरे पुडरीकियां मया तीर्थकृतो गिरा ॥६८॥ स्वयं प्रभस्य ज्ञातानि वार्तां बालस्य पृच्छता । भवातराणि तवृद्धिस्थानं लाभो महानपि ॥ ६६ ॥ [ पर्व ७२ ] 1 अर्थ - श्रीकृष्णकी बात सुनकर नारद कहने लगा-सुनो पूर्व विदेह की पुडरीकिणी नगरी में मैंने स्वयप्रभ तीर्थंकर को बालक प्रद्य ुम्न की बात पूछी थी। उनकी वाणी से मैंने प्रद्युम्न के भवातर जान लिये है । और वह इस वक्त किस स्थान मे वढ रहा है तथा उसको क्या-२ महान् लाभ होने वाला है यह भी मैंने उन्ही भगवान् की वाणी से जान लिया है । उत्तर पुराण के इस उल्लेख से प्रगट होता है कि- नारद ने प्रद्युम्न का हाल विदेह क्षेत्र मे स्वयंप्रभ तीर्थंकर से जाना था । न कि सीमधर स्वामी से । वहाँ उस वक्त सीमधर थे ही नही, बल्कि वे तो उस समय पैदा भी नही हुए थे। क्योकि एक नगरी में ही नही विदेह के किसी एक महादेश मे भी एक काल
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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