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________________ वास्तुदेव ] [ ५२७ भेद है। यह भेद लिखने-पढने की गलती से भी हो सकता है। कुछ नामभेद शायद इस कारण से भी किये हो कि उनमे स्पष्टत अजैनत्व झलकता है । जैसे अर्यमा का आर्य, शेप का शोष दिति का उदिति बनाया गया है। क्योकि अन्यमत मे आर्यमा का अर्थ पितरो का राजा, शेप का अर्थ शेष-नाग, दिति का अर्थ दैत्यो की माता होता है। सविंद्र और साविंद्र शब्दो का कुछ अर्थ समझ नहीं पड़ता है, जरूर ये शुद्ध शब्द सवितृ और सावित्र का बिगडा रूप है। इसी तरह शुद्ध शब्द विदारि का गल्ती से विचारि लिखा पढा गया है। ..! वास्तुदेवो के नामो मे रुद्र, जयत (यह नाम इन्द्र के पुत्र का है) और अदिति (यह देवो की माता का नाम है) ये नाम दोनो ही मतो के नामो मे है। परन्तु मूल मे ये नाम साफ तौर पर ब्राह्मणमत के मालम देते है। जैन मान्यता के अनुसार इन्द्र का पुत्र और देवो की माता का कथन बनता नहीं है। जैनम्त मे देवो के माता पिता होते ही नहीं हैं, न रुद्र ही कोई उपास्य देव माना गया है। भगवान् महावीर ने ब्राह्मणमत की फैली हुई जिन मिथ्या रूढियो का जवरदस्त भडाफोड किया था खेद है उनके शासन मे ही मागे चलकर वे रूढिये प्रवेश कर गई है। DEHAT
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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