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________________ ५०० ] [* जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ द्रव्य से नहीं मिल सकता है जैसे "तिल्ली मे तेल" इत्यादि और भी उदाहरण दिए जा सकते है। इसी दृष्टान्त के जरिए यह भी समझ लेना चाहिए कि अगर दस तोले सोने मे एक तोला चांदी मिलाई जावे तो इस मेल से सोना आसानी से पहिचानने मे आ जाता है। किन्तु वीस ताले चाँदी मे एक तोला सोना मिलाया जावे तो इस मेल मे सोने की पहिचान बड़ी मुश्किल से होती है । तथापि उस मेल मे भी सोना अपने गुण धर्म को नही छोड़कर अपने आपकी अलग सत्ता रखता है। उसी प्रकार जब आत्मा हल्के कर्मोदय से मनुष्य योनि में जाता है तो वहीं आत्मा की पहिचान आसानी से हो जाती है। किन्तु जब घोर कर्मोदय से वह निगोद मे पहुँच जाता है तो वहाँ उसको अक्षर के अनन्तवें भाग मात्र - ज्ञान रहता है। वहाँ उसकी ऐसी दशा हो जाती है कि यह जीव है कि नहीं यह पहिचानना भी कठिन हो जाता है। इतने पर भी आत्मा अपने गुण धर्म को नहीं छोड़कर वहाँ की अपनी अलग सत्ता बनाये रखता है। जीव के होने वाले कर्म संयोग की चर्चा से जैन शास्त्रों का बहुतसा भाग भरा पड़ा है। जैनधर्म मे जीव, अजीव, आस्रव, बध, सवर, निर्जरा और मोक्ष ये सात तत्व माने हैं। तत्वो के ये भेद भी इसी विषय को लेकर हुए हैं। तमाम जैन शास्त्र प्रथमानुयोग, करणानुयोग और द्रव्यानुयोग इन चार अनुयोगो मे बटे हुए है। इन अनुयोगो का भी मुख्य आधार यहीं विषय है। प्रथमानुयोग मे जो कथायें लिखी मिलती हैं उनका उद्देश्य ही यह बतलाता है कि उनमे से किन-किन ने क्या-क्या अच्छे-बुरे काम किये जिनसे कर्मबन्ध होकर उनको भवातर मे
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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