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________________ पंचकल्याणक तिथियाँ और नक्षत्र 1 [ २६ (४) वासुपूज्य के सव कल्याणक शतभिषा नक्षत्र मे हुए है किन्तु मुद्रित उत्तर पुराण में इनकी दीक्षा तिथि फागुण बुदी १४ ज्ञान तिथि माघसुदी २ और मोक्ष तिथि भादवा सुदी १५ की लिखी है और तीनो का नक्षत्र विशाखा लिखा है लेकिन इन तीनो तिथियो के साथ विशाखा की सगति किसी तरह बैठती नही है, 'शतभिषा' के साथ बैठती है यहाँ भी पाठ की अशुद्धि ही जान पडती है । तीनो पाठो मे विशाखा वाक्य अशुद्ध ही जान पडता है तीनो पाठो मे विशाखा,वाक्य अशुद्ध है उसके स्थान मे शुद्ध वाक्य भिषका' अथवा 'भिषाका' होना चाहिये । शतभिषा के आगे 'का' प्रत्यय लगाने से शत 'भिषका' या शत 'भिषाका रूप वनता है--जिसका सक्षिप्त नाम भिषका या भिषाका होता है जैसे सत्यभामा का भामा, यह सक्षिप्त नाम होता है। ग्रथकार गुणभद्र ने भी यहाँ “शतभिषाका" इस वाक्य का सक्षिप्त नाम "भिषाका" का प्रयोग किया है। प्रतिलिपि करने वालो ने भिषाका प्रयोग को अशुद्ध समझकर उसे विशाखा वना डाला है । इस तरह की गल्तियाँ अन्य कई हस्तलिखित ग्रथो में भी देखने को मिलती है । और शुद्ध पाठ को अशुद्ध बना दिया जाता है। इसका एक उदाहरण इस लेख में ऊपर भी बताया गया है कि "आषाढेऽश्विनी योगे” यह शुद्ध पाठ था जिसका "आषाढे स्वातियोगे" ऐसा अशुद्ध बना दिया गया है। यह हम इस लेख मे ऊपर लिख चुके हैं कि प्राय प्रत्येक तीर्थंकर के अपने-अपने पाँचो, कल्याणक अधिकतर एक ही नक्षत्र में हुए है। इस अपेक्षा से भी वासुपूज्य के गर्भजन्म की तरह शेष तीन कल्याणक भी शतभिषा मे ही होने चाहिए।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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