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________________ ४२६ 1 ★ जैन निबन्ध रत्नावली भाग ३ श्याम वर्ण का होने से उसकी आड मे जितना भाग चन्द्रमा का आत्ता : है उतना भाग हमें दिखाई नहीं देता है । जैसा कि हम ऊपर लिख आये है और जितना भाग चन्द्रमा का राहु की आड में नहीं रहता उतनें भाग का शुद्ध प्रकाश तो मिलता ही है यह प्रत्यक्ष सबके है ही और रात्रि में स्वच्छ आकाश मे जब आप थोडी कला वाले चन्द्रमा को कभी ध्यान से देखेंगे तो चन्द्रमा का जितना भांग राहु को बाड़ मे होता है ' उसका भी कुछ आभास होता ही है । प्रत्येक्ष कि प्रमाणम् 1 4 7 इस पर शंका होती है कि चन्द्रमा में स्वयं मे चमक नहीं वह सूर्य के प्रकाश से चमकता है तो अन्य ग्रह नक्षत्रादि किसके प्रकाश से चमकते हैं और स्वयं सूर्य भी किसके प्रकाश से चमकता है ? यदि सूर्य स्वयं प्रकाशवान है तो वैसा ही चन्द्रमा को क्यों न माना जावे और चन्द्रमा में प्रकाश सूर्य का दिया हुआ है तो चन्द्रमा को चांदनी शीतल क्यों है ? सूर्य का प्रकाश पाते ही कमल खिल उठते हैं ऐसा प्रकृति, का नियम है | मंगर चंद्रमा का प्रकाश सूर्य का दिया हुआ होता तो कमल मुद्रित भी नहीं होते और आपके लेखानुसार चंद्रमा जब सूर्य से नीचे चलता है तो सूर्य का प्रकाश चंद्रमा के ऊपरी हिस्से पर पडेगा न कि नीचे के हिस्से पर । तब हमको चंद्रमा के नीचे का हिस्सा प्रकाशवान् नही दिखना चाहिए था। ऐसी अटपटी बातें लिखने से क्या फायदा सीधी सी बात जो चंद्रमा के घटवढ की जैन शास्त्रो मे लिखी है वही स्वाभाविक मालूम पडती है । और भी राशि आदि की बातें व तीसरें वर्षं अधिक मास होना आदि सब जैन शास्त्रो मे लिखा है । आप त्रिलोकसार नामक जैन शास्त्र देखिएगा उसमे सब मिलेगा। इस तरह जैम खर्गोल (ज्योतिष्क) से भी पंचाग की सब बातें समीचीन ढंग से सिद्ध होती है । ⭑
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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