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________________ जैन खगोल विज्ञान ] [ 416 सूर्य चन्द्र दोनो साथ साथ हो जाते हैं। चकि चन्द्रमा को सूर्य से मदगति होने के कारण उस रात्रि के अत मे चन्द्रमा के अपने उदयस्थान पर पहुँचने के पहिले ही सूर्य आगे चलकर उदय हो जाता है इससे अमावस की सारी रात्रि मे चन्द्रदर्शन नहीं होता है। इस प्रकार यह सूर्य के निमित्त से कमज्यादा समय तक चन्द्रदर्शन होना जानना चाहिये / लेख के शुरू मे चन्द्रमा के छाटे बडे आकार का होना राहु के निमित्त से बताया है यह इन दोनो कथनो मे खास अतर समझना चाहिये / भूगोल-खगोल के विषय मे कुछ विशिष्ट ज्ञातव्य बाते हमने “जैन-निवध रत्नावली" पुस्तक मे भी ग्रथित की हैं-देखो पृ 284 पर "भरतरावत मे वृद्धि-ह्रास किसका है ?" शीर्षक निवध तथा पृ० 261 पर-"उपलब्ध जैन ग्रन्थो मे ज्योतिषचक्र की व्यवस्था' शीर्षक निबध / भारतीय वर्ष मास तिथि नक्षत्रादि की गणना सूर्य चन्द्र तारो की चाल पर आधारित है जब कि अन्य सभी की कैलेन्डर (Calander) पचाग पद्धति काल्पनिक है अत वह ऋतुओ से भी मेल नही खाती। प्रसगोपात्त भूभ्रमण के विषय मे भी कुछ समीक्षात्मक विचार नीचे प्रस्तुत किये जाते है - भू-भ्रमण मान्यता की सदोषता जैन-जैनेत्तर-पौर्वात्य एव पाश्चात्य सभी के धर्मग्रन्थो (आगम, पिटक, वेद, बाईविल, कुरान आदि) मे पृथ्वी को स्थिर और सूर्य को चर माना है किन्तु जब ज्योतिप और गणित पद्धतियो मे विकास का युग आया तब इस विषय मे तार्किक दृष्टि से ऊहापोह होने लगा। वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, श्रीधर,
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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