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________________ जन खगोल विज्ञान ] [ ३६७ चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र और तारे ये इनकी ५ विस्मे है और ये ज्योतिष्क कहलाते हैं। ___ठोस गोल चीज जिसकी गोलाई गेद जैसी हो उसके दो खड करने पर उनमे से एक खडको ऊपर इस प्रकार स्थापन करें कि गोल भाग नीचे की तरफ रहे और समतल भाग ऊपर को रहे, ठीक ऐसा ही आकार इन ज्योतिष्को का समझना चाहिये । ये सब ऊपर को थाली जैसे गोल होने के कारण जितनी इनकी चौडाई है उतनी ही इनकी लबाई है। चद्रमा की चौडाई एक योजन के ६१ भागो मे ५६ भाग प्रमाण है। सूर्य की चौडाई एक योजन के ६१ भागो मे ४८ भाग प्रमाण है। शुक्र की १ कोश, वृहस्पति की कुछ कम १ कोश । बुध-मगल-शनि की आधा-२ कोश की चौडाई है। तारो की चौडाई किन्ही की पावकोश, किन्ही की आध कोश. किन्ही की पौन तथा एक कोश की है। किन्तु कही यह भी लिखा मिलता है कि- कोई भी तारा आध कोश से अधिक विस्तार का नही होता है। और न कोई भी ज्योतिष्क पाव कोश से कम विस्तार का होता है । __मोटाई का हिसाब प्राय ऐसा है कि-जिसकी जितनी चौडाई है उससे आधी उसकी मोटाई होती है। किन्तु राजवार्तिक - श्लोकवार्तिक आदि शास्त्रो ने शुक्र वृहस्पति-बुध-शनिमगल और राहु की मोटाई ढाई सौ धनुष की ही लिखी है। प्रसगोपात्त यहा हम क्षेत्रमान का भी कथन कर देते है ८ यवधान्य के मध्य की जितनी चौडाई हो उतने माप का एक उत्सेधागुल होता है। ऐसे २४ अगुलो का एक हाथ, चार हाथ का १ धनुष, दो हजार धनुषो का १ कोश और ४ कोशो का १ योजन होता है। यह उत्सेध योजन कहलाता है।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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