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________________ १४ ] [★ जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ उसी क्रम में अगली प्रत्येक तिथि मे प्राय प्रत्येक नक्षत्र नम्वर वार आता जावेगा । जैसे चैन सुद १५ को चित्रा नक्षत्र है तो वैशाख वुद १० को या उसके अगले पिछले दिन मे चित्रा के वाद का १० व नक्षत्र शतभिषा आवेगा । इस हिसाव से सदा ही तिथियो के साथ किन्ही निश्चित नक्षत्रो का सम्बन्ध पाया जा सकेगा । हाँ कभी-कभी एक या दो नक्षत्रो का आगा पीछा भी हो सकता है । इसके लिए कोई सा भी नया पुराणा किसी भी वर्ष का पचाग उठाकर देख लीजिये । इस गणना के अनुसार हम जान सकते है कि अमुक मास की अमुक तिथि को अमुक-अमुक नक्षत्र ही हो सकते हैं । दूसरे नहीं । जवकि हमारे यहाँ कल्याणको की हर तिथि के साथ नक्षत्र भी दिया गया है तो इस कसौटी को लेकर हम क्यो न जाँच कर कि किस ग्रन्थ की तिथियाँ उनके साथ मे लिखे नक्षत्रो से मिलती है और किसकी नही ? उक्त ग्रन्थो मे सबसे प्राचीन त्रिलोक प्रज्ञप्ति ग्रथ माना जाता है । मत पहिले इसी की जाँच करते है । इस ग्रन्थ मे चार कल्याणको की तिथियाँ और उनके साथ नक्षत्र दिये गये हैं । गर्भ कल्याणक के तिथि नक्षत्र नही लिखे हैं । इस ग्रंथ मे लिखी तिथियो के साथ जब हम इसमे लिखे नक्षत्रो का मिलान करते है तो अनेक जगह तिथियो के साथ नक्षत्र नही मिलते है । नमूने के तौर पर नीचे की तालिका देखिये - ( अधिकार ४) -- जन्म कल्याणक- सम्भवनाथ - मगसर सुद १५ ज्येष्ठा । सुमतिनाथ श्रावण सुद ११ मघा । दीक्षा कल्याणक अनुराधा । धर्मनाथ-भादवासुद १३ पुण्य । पुष्पदन्त-पोस सुद ११
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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