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________________ जैन धर्म श्रेष्ठ क्यो है ? ] [ ३८१ जैनो के चौबीस वे तीर्थकर थे। जिनका कि सवत् आज भी चल रहा है। उनके २५० वर्ष पहिले भगवान् पार्श्वनाथ हुये । कुछ लोगो का यह भ्रम पूर्ण विश्वास है कि पार्श्वनाथ जैनधर्म के आदि स्थापक थे उन्हे जानना चाहिये कि पार्श्वनाथ के पहिले भी २२ तोथंकर और हुये है जो जैनधर्म के विस्तारक थे। सब से प्रथम श्री ऋषभदेव ने इसका प्रचार किया है । भागवत के पाचवें स्कन्ध के अध्याय २-६ मे ऋषभदेव का कथन है जिसका भावार्थ यह है "चौदह मनुमओ मे पहिला मनु स्वय प्रभू का प्रपौत्र नाभि का पुत्र ऋषभदेव हआ जो जनमत का आदि प्रचारक था। इनके जन्मकाल मे जगत् की बाल्यावस्था थी इत्यादि ।" . महाभारत की टीका मे भी जैन ऋषभ का उल्लेख है। इससे मानना होगा कि हिन्दू शास्त्रो के मत से भी ऋपभ ही जैनधर्म के प्रथम प्रचारक थे। ६-डा० फुहरर ने जो मथुरा के शिला लेखो से समस्त इतिहास की खोज की है उससे जान पडता है कि पूर्वकाल में जैन लोग ऋषभदेव की मूर्तिया बनाते थे। इस विषय का “एपिग्रेफिया इडिका" नामक ग्रन्थ अनुवाद सहित सुद्रित हुआ है। ये शिला लेख दो हजार वर्ष पूर्व कनिष्क-हविष्क वासुदेवादि राजाओ के राजत्वकाल मे खोदे गये है। इससे सिद्ध है कि यदि महावीर-पार्श्वनाथ ही जैनधर्म के प्रथम प्रचारक होते तो दो हजार वर्ष पहिलेके लोग ऋषभदेवकी मूर्तिकी पूजा नहीं करते। ७ जैनियो के परम पूज्य चौबीस तीर्थकरो को वेदो से भी नमस्कार किया है। देखो
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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