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________________ ३२ जैन धर्म में अहिंसा की व्याख्या समार के किसी भी धर्म पर दृष्टिपात करिये तो उसमें दो बातें मुख्यत पाई जाती है । वे हूं आचार और विचार | उस धर्म मे बताये गये चारित्र के नियमो का पालन करना आचार कहलाता है | और तत्व निर्णय के लिये ऊहापोह जो किया जाता है उसे विचार कहते हैं । जैन धर्म में भी ये दो बाते बताई हैं और बहुत ही उत्तम बताई है। उनके नाम हैं- अहिंसावाद और स्यादवाद । जैन धर्म मे आचार का मूल आधार अहिंसा और विचारों का मूल आधार स्याद्वाद यानी अनेकात बताया गया है । स्याद्वाद से सब, सबके विचारों को शान्ति से समझे, व्यर्थ का वितडावाद न करें और अहिंसा से राव, सबके जीवन की रक्षा करें, खुद आराम से जीवे और दूसरों को भी आराम से जीने देवे । इस प्रकार जैन धर्म ने ससार को ये दो चीजें ऐसी अमुल्य दी हैं जिनके आश्रय से ससार के सभी प्राणियो को शान्ति का लाभ हो सकता है । क्योंकि वस्तुत अशान्ति के. वैमनस्य के प्राय दो ही कारण हुआ करते हैं - आपस मे विचारों का न मिलना और दूसरे के दुखो की परवाह न करना । इसमे कोई संदेह नहीं कि जैन धर्म ने अशान्ति के इन दोनो ही कारणों को मिटाने के लिये अहिंसा और स्याद्वाद बता कर दुनिया का बहुत बडा उपकार किया है। इन्ही बातों का निर्देश करते हुए स्वामी समतभद्र ने जैन मत को अद्वितीय मत बताया है
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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