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________________ ३२० ] [ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ लोके यथा-"स्याद्धर्ममस्त्रिया पुण्य श्रेयसी सुकृत वृषइति" | लिखा है यह अमरकोप के काड १ काल वर्ग ४ का २४वा श्लोक है । इसी के बाद "शास्त्रे यथा-" करके आत्मानुशासन गुणभद्र कृत का एक श्लोक और नीतिवाक्यामृत (सोमदेव कृत) का एक सूत्र दिया है। इससे साफ प्रकट है कि आशाधर ने अमरकोष को लौकिक ग्रन्थ बताया है, जैन ग्रन्थ नही । (२) अमरकोष की अनेक प्रतियो मे प्राप्त-"सर्वज्ञी वीतरागोईन् .” श्लोक जो पूर्व मे उद्धृत किया गया है उसमे जिनेन्द्र का नाम 'निहींक' भी बताया है। जिसका अर्थ लज्जाहीन (नग्न) है । ऐसा नाम कभी कोई जैन अपने आराध्यदेव के प्रति नहीं दे सकता। धनजय कृत नाममाला और हेमचन्द्र कृत अभिधान चिन्तामणि जो प्रसिद्ध प्राचीन जैन कोष हैं उनमे कही भी यह नाम या इसके अर्थ का कोई पर्यायवाची नही है। हाँ शिवोपासक क्षीर स्वामी ने जरूर अमरकोष टीका मे पृष्ठ १७३ पर ब्रह्म वर्ग मे बुद्ध और जैनादि के नाम देते हए दिगम्बर जैन के इस प्रकार नाम उद्धृत किये हैं - क्षपणार्षि दिगम्बर । नग्नाट. श्रावकोऽह्रीको, निग्रंथो जीवजीवको ।' इसमे एक नाम 'अह्रीक' है जिसका भी अर्थ लज्जाहीन (नग्न) ही है । यह साफ अमरकोष के 'निहींक' का पर्यायवाची है
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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