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________________ ३१२ ] [ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ (३) आज से ११२ वर्ष पूर्व विक्रम स..१६१६ मे प्रकाशित देवदत्त त्रिपाठी कृत हिन्दी टीका पृ० ३ पर लिखा है:"सर्वज्ञ , वीतराग , अईन्, केवली, तीर्थकृत, जिन ये नास्तिक के देवताओ के नाम है।" (मूल मे श्लोक नही दिया है, जब हमने पूरे श्लोक के लिये अमरकोष की हस्तलिखित प्रतियो की खोज की तो बघेरा, टोक, निवाई आदि के जैन भण्डारो की प्रतियो मे वह पूरा श्लोक इस प्रकार उपलब्ध हुआ "सर्वज्ञो वीतरागोऽहकवली तीर्थकृज्जिन । स्याद्वादवादी निर्हीकः निन्याधिप इत्यपि ॥" अनेक जैन विद्यालयो के संस्कृत कोर्स (पाठ्यक्रम) मे अमरकोष नियत है। अधिकारियो का कर्तव्य है कि-वे यह श्लोक विद्यार्थियो को अमर कोष मे पढाने का प्रबन्ध करावें जिससे इसका प्रचार हो। साथ ही जैन प्रकाशन संस्थाओ का भी कर्तव्य है कि-वे भी अमरकोष मे बुद्ध के नामो के आगे यह Y नोक मोटे टाइप मे प्रकाशित कर अमरकोष के विविध सस्करण निकाले जिससे दीर्घकाल से चली आ रही क्षति की कुछ पूर्ति हो। इसी की टाइप (नकल) का श्लोक धनंजय नाममाला मे इस प्रकार है सर्वज्ञो वीतरागोऽन्वे वली धर्मचक्रमत् ॥११६॥ इससे भी अमरकोष मे उक्त श्लोक वर्तमान रहना प्रमाणित होता है। जिन देव के नाम वाले श्लोक के सिवा अमरकोष के
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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