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________________ अढाई द्वीप के नक्शे में सुधार" - ] [ २६३ २४ पर "देवारण्य' दिया है उनकी जगह क्रमश "देवारण्य" "भूतारण्य" परिवर्तित करना चाहिए । देखो त्रिलोकसार गाया ६६० की वचनिका। __ (१०) नक्शे मे हृद् जगह-जगह लिखा है सर्वत्र ह्रद चाहिए अथवा द्रह कर देना चाहिए। (११) कालोदधि समुद्र लिखा है यह गलत है क्योकि उदधि, समुद्र दोनो एकार्थक हैं अत 'कालोदक समुद्र' नाम देना चाहिए अथवा सिर्फ "कालोदधि" । (१२) हैरण्यवन क्षेत्र हैमवन क्षेत्र लिखा है चाहिए हैरण्यवत क्षेत्र हैमवत क्षेत्र । (१३) नदी नामो मे हरि नदी लिखा है चाहिए हरित् नदी। इमोतरह कही-कही 'नरकाता' नदी का नाम भी गलत लिखा है।' इस प्रकार ये भूले नक्शे में हमारी दृष्टि मे आई है । यदि इस विषय के किसी अच्छे जानकार विद्वान् से परामर्श करके नक्शा तैयार किया जाता तो ये भूले उसमे नहीं रहती। नक्शे का आकार भी बेडौल है। अगर कुछ महीन अक्षरो मे छापा जाता तो नक्शा कुछ छोटा बनकर काच मे जडने योग्य चन जाता व उसमे और भी आवश्यक जानकारी दी जा सकती थी। जैसे विदेह क्षेत्र सम्बन्धी मुख्य नगरियो के नाम, विभगा नदिये, वक्षारगिरि, जम्बूशाल्मली वृक्ष, भद्रशाल आदि वन वगैरह। नक्शे मे सकेतसूचिका, सबोधन आदि देकर व्यर्थ ही नक्शे का कलेवर भरा गया है। इनकी जगह अढाई द्वीप मे कहाकहा अकृत्रिम चैत्यालय है उनकी कुल कितनी सख्या है, मेरु को
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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