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________________ अढाई द्वीप के नक्शे में सुधार की आवश्यकता ___ यह नक्शा हाल ही में श्रीयुत पन्नालाल जी जैन दिल्ली की ओर से प्रकाशित हुआ है। जैन भूगोल के ज्ञान की जैन समाज में बडी कमी है । और तो क्या जैन विद्वान तक भी इस दिशा में पूरी जानकारी नहीं रखते है । ऐसी अवस्था मे आपका यह प्रयास समयोपयोगी और स्तुत्य है। आपने परिश्रम के साथ यह नक्शा तैयार किया है तदर्थ आप धन्यवाद के पात्र है । इसके पहिले आपने चौबीस तीर्थंकरों के ज्ञातव्य विपयो का नक्शा भी प्रकाशित करके वितरण किया है। ऐसे कामो में आपकी अभिरुचि होना यह एक सराहनीय बात है। उक्त अढाई द्वीप का नक्शा मेरे सामने है। देखने पर उसमे मुझे भूलें नजर आई हैं, जिनका मैं यहाँ उल्लेख कर देना उचित समझता हूँ। (१) विदेह क्षेत्र मे सीता के उत्तर तट और सीतोदा के दक्षिण तट के देशो को नक्शे मे उल्टेकम से लिखे है। यानी दें लवणसमुद्र से भद्रशालवन की तरफ लिखे गये हैं। ऐसा लिखना मलत है । उन्हे क्रम से भद्रशाल से लवण समुद्र की तरफ लिखने
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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