SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 290
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८६ ] [* जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ मूर्ति के पादपीठ पर जो प्रतिष्ठा की तिथि अकित की जाती है वह भी ज्ञानकल्याणक के दिन की ही अकित की जाती है। (इससे भी यही सिद्ध होता है कि अईत्प्रतिमा मे मोक्षकल्याण का माक्षात् विधान नही है, स्मरणमात्र है, साक्षात् विधान असगत है (सिद्ध प्रतिमा मे पचम कल्याण प्रदर्शन फिर भी सगत हो सकता है, अर्हत्प्रतिमा मे नही))। आशा है वर्तमान के प्रतिष्ठाचार्य इस पर गम्भीरता से विचार करेंगे । उनके विचारार्थ ही हमने यह लेख प्रस्तुत किया है । अगर अर्हत्प्रतिमा मे दाह-सस्कार का विधान करना उन्हे भी अयुक्त नज़र आये तो उनका कर्तव्य है कि आगे के लिए उन्हे ऐसा करना बन्द करना चाहिये ताकि गलत परम्परा यहीं समाप्त हो जाये । प्रतिष्ठा सम्बन्धी और भी भूले हमने पहिले दिखाई थी जिनकी चर्चा 'जैन निबन्ध रत्नावली' पुस्तक मे की गई है उन पर भी ध्यान दिया जाये ऐसी प्रार्थना है ।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy