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________________ क्या पउमचरिय दिगम्बर ग्रन्थ है ] [ २८३ वष्टिवर्षसहस्राणि चत्वारि च तत. पर। रामायणस्य विज्ञयमतरं भारतस्य च ॥ २८॥ . 'पद्मचरित' पर्व १०६ (इनमे लिखा है कि महाभारत और रामायणमे यानी श्रीकृष्ण पाडवादि और रामरावणादिक, समयका अतर ६४ हजार वर्षका है । " यह अन्तर बहुत ही विचारणीय है मुनिमुव्रतके तीर्थमे श्रीरामचन्द्र हुए और नेमिनाथके वक्त श्रीकृष्ण । तथा दोनो ही ग्रन्थोंके पर्व २० मे जो तीर्थकरोका अन्तराल कथन है वहा लिखा है कि मुनिसुव्रतके छह लाख वर्षवाद तो हुए नमिनाथ और नमिनाथके ५ लाख वर्षबाद हुए नेमिनाथ । अर्थात् मुनिसुव्रत और नेमिनाथका अन्तराल ममय ११ लाख वर्षका होता है । तब यहाँ भारत और रामायणका अन्तर ६४ हजार वर्ष ही कैसे लिखा है। हमने खूब ही विचार किया पर किसी तरह इस कथनकी सगति नही बैठती । अन्य विद्वानोको भी सोचना चाहिये । इति)* *पद्मचरित की प्रशस्ति में रविषेण ने जिनको गुरु रूप में नमस्कारादि किया है वे जनाभास प्रतीत होते हैं- यापनीय सघादि या चैत्यवासी हो । 'पउमचरिय' की हस्तलिखित प्रतियां भी मात्र श्वे. ग्रथ मण्डारो मे हो पाई जाती है दि० ग्रथ भण्डारो मे कतई नहीं इससे भी पूउमचरिय श्वे० कृति सिद्ध होती है ।
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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