SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 273
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ क्या पउमचरिय दिगम्बर ग्रन्थ है ] [ २६६ से वे बातें बतलाता हूँ जो इसे श्वेतावर ग्रन्थ होना सिद्ध करती हैं । J पुराने विद्वानोंने जो दिगम्बर श्वेताम्बरके ८४ अन्तर छाटे हैं उनमेसे कितने ही अन्तर इस पउमचरियमे पाये जाते है । जैसे- भगवान्को माताको चौदह स्वप्न दीखना, हरिवशकी उत्पत्ति भोगभूमिज युगलसे होना, स्वर्गीकी सख्या १२ मानना और चक्रवर्तीके ६६ हजारसे कम राणिये बताना | ये सब बातें पउमचरियके निम्न पद्योमे देखिये - १ - अह सा सुह पसुत्ता रयनीए पच्छिमम्मि जामम्मि । पेच्छइ चउदस सुमिणे पसत्यजोगेण कल्लाणी ||१२|| 'पर्व २१' अर्थ- सुनिसुव्रतको मात्ताने रात्रिके पिछले प्रहरमे १४ स्वप्न देखे | २ - सीयल जिणस्स तित्थे सुमुहो नामेण आसि महिपालो । कोसंबीनयरीए तत्येव य वीरयकुविदो ॥ २ ॥ हरिऊण तस्स महिलं वणमाल नाम नरवंइ तत्थ । मुज्जइ भोगसमिद्ध रईए समयं अणंगो व्व ॥ ३ ॥ अह अन्नया नारदो फासूयदाण मुणिस्स दाउण । असहिओ उववन्नो महिलासहिओ य हरिवासे ||४|| कंताविओयदुहिओ पोट्टिलय मुगिस्स पायमूलम्मि । घेत्तणय पव्वज्झ कालगओ सुरवरो जाओ ॥ ५ ॥ अवहिविसएण नाओ देवो हरिवंस सभवं मिहुण । अवहरिऊणय तुरियं चपानयरम्मि आणेइ ॥ ६ ॥ X 'हरिवस ' पाठ अशुद्ध है गल्ती से छप गया मालूम होता है 1 'हरिवास' पाठ चाहिये, हरिवस तो अभी पैदा ही नही हुआ तब उसमे
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy