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________________ · て [ ★ जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ सीसेण तस्स रइयं राहवचरियं तु सूरिविमलेणं । सोऊणं पुव्वगए नारायणसीरिचरियाइ ॥ ११८ ॥ २६४ ] इन पद्योमे यह सूचित किया है कि स्व समय पर समय मे सद्भाव रखनेवाले 'राहू' नामक आचार्य के एक नागिलवशज 'विजय' नामके शिष्य थे। उनके शिष्य 'विमलसूरि' ने यह रामचरित्र रचा है । ग्रन्थकी अतिम सधिसे यह भी प्रगट होता है कि इस ग्रन्थके कर्त्ता पूर्व धारी थे । वह सन्धि इस प्रकार है "इइ नाइलवमदिणयर राहुसूरिपसीसेण पुव्वहरेण विमलायरियेण विरइय सम्मत्तं पउमचरियं ।" नागिलवंशके सूर्य जो राहुसूरि उनके प्रशिष्य पूर्वधारी विमलाचार्य रचित पउमचरिय समाप्त हुआ । अपने दिगबर संप्रदाय मे रविषेणाचार्यकृत पद्मचरित भाषा बचनिकाका, जो पद्मपुराणके नाम से मशहूर है काफी प्रचार है । उसके बाबत में बहुत दिन पहिलेसे सुन रहा था कि यह प्राकृत पउमचरियसे मिलता हुआ है। अब जब कि वह पद्मचरित माणिकचन्द्र ग्रन्थ माला द्वारा मूल संस्कृत मे छपा तो उसे पउमचरिय से मिलाने का मुझे अवसर मिला। इसीके साथ मैंने हेमचन्द्राचार्यकृत श्वेतार्बर जैन रामायणका हिन्दी अनुवाद तथा स्व० प० दौलतरामजीकृत पद्मपुराण वचनिका भी साथ मिलान किया हैं । WO इस प्रकार चार ग्रन्थोको परस्पर निरीक्षण करने से मुझे कितनी ही नई बाते जानने मे आई है । और वह भेद भी कितने
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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