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________________ ग्रन्थ का विपय परिचय इस ग्रन्थ मे ५५ निबन्ध है । (१) कुछ मे ग्रन्थो और ग्रन्थकारो की प्रचलित मान्यता की शोध पूर्ण समीक्षा है । (२) कुछ मे इतिहास की दिसगतियो का तर्क पूर्ण खण्डन है । (३) कुछ लेख आचारो-विचारो मे जो जो विकृतिया आगई हैं उनपर तीखा प्रहार है । (४) अनेक लेख सिद्धातो की सतर्क प्रमाणता के निरूपक हैं । (५) कुछ सिद्धात प्ररूपक हैं । सब लेखो के शीर्षक निवन्ध-सूची से जाने जा सकते हैं अत पुनरावृत्ति न हो उनके नाम यहा न देकर केवल वर्गीकरण किया गया है तथापि कुछ लेख तो अवश्य अपनी विशेषता रखते हैं। जैसे १-रात्रि भोजन त्याग (१) २-पचकल्याणक तिथिया और नक्षत्र (२) ३-अलब्धपर्याप्तक और निगोद (४) ४-ऐलकचर्या (५) ५-"समाधिमरण के समय मुनि दीक्षा" (१६) आदि अनेक लेख सतक सप्रमाण लिखे गये है जिनसे अनेक गलत धारणाओ का परिमार्जन होता है । कुछ लेख विद्वानो के लिए विशेष विचारणीय है उनमे ३ लेख निम्न प्रकार हैं : (१) सिद्धाताध्ययन पर विचार (१०) (२) उद्दिष्ट दोष मीमासा (५३) (३) साधुओ की आहार चर्या का समय (५०)
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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