SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म मे नाग तर्पण ] करना कैसे सगत हो सकता है ? और यहाँ यह नागतर्पण को विधान किस प्रयोजन को लेकर किया गया है ? क्या इसलिये कि- वे जिनयज्ञ में विघ्न न करे ? मगर जैनागम के अनुसार तो देवगति के सभी देव जिनधर्मी होते है तव वे जिनयज्ञ में विघ्न करेगे भी क्यो ? और जो चीज उन्हें दी जा रही है वह उनके काम की न होने से वे विघ्न करते रुकेंगे भी क्यो यदि कहो कि - जैसे भगवान जिनेन्द्र क्षुधारहित है फिर भी हम उनकी पूजा नैवेद्य फेलादि से करते हैं वैसे ही यहां नागकुमार देवो के विषय में समझ लेना चाहिये। ऐसा कहना ठीक नहीं है। क्योंकि भगवान की पूजा में 'द्रव्य चढाया जाता है यह उनके भोग के लिये नही चढाया जाता है । वह तो भक्ति से भेटस्वरूप है किन्तु यहाँ तो आशाधर ने नागकुमारो को तृप्त करने की बात लिखी है। इस प्रकार के विधिविधान एक तरह से बाल क्रीडा के समान मम पडते है । इस पर मनन शील विद्वानो को विचार करना चाहिये । ब्राह्मण ग्रंथो मे देवपितरो को जल देकर तृप्त करने को तर्पण कहा है। उसी तरह का यज्ञ यह नागतर्पण लिखा गया है । f [ १६५
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy