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________________ १४८ ] [ * जैन निवन्ध रत्नावली भाग २ विशेप (जिसे उपपाद शैया कहते है) से होती है। पैदा होने के थोडे ही ममय बाद वे जवान हो जाते हैं और फिर उम्र भर जवान ही बने रहते है। उन सबकी कोई निश्चित आयु होती है। देवियों की आयु देवो में कम होती हैं । आयु समाप्त होने के बाद इन्द्रादि को भी अन्य योनियो में जन्म लेना पडता है। इसलिए मनुप्यादि की तरह वे भी समारी जीव ही हैं । एक प्रमिद्ध प्राचीन जैनाचार्य स्वामी ममताभद्र ने कहा है - "श्वापि देवोऽपि देव श्वा जायते धमकिल्विपात् । कापि नाम मवेदन्या सद्धर्माच्छरीरिणाम् ॥" अर्थात् - धर्म के प्रताप से कुत्ता भी देव हो जाता है। देवयोनि में जन्म लेता है और पाप के फल से देव भी मरकर कुत्ते की योनि में जाता है। इसलिए प्राणियो के लिए धर्म से अतिरिक्त अन्य कोई क्या मम्पदा हो सकती है? इम स्वर्ग लोक से ऊपर एक अहमिन्द्रलोक' भी है. जिसमे भी देवो का निवास है । देव भी स्वर्ग लोक जैसे ही है। उनकी आयु स्वर्ग लोक के देवो का निवास ह। वे देव भी स्वर्ग लोक जैसे ही है। उनकी आय स्वर्गलोक के देवो से अधिक हाती है। वा देवियाँ ही होी हैं अत वे आजीवन ब्रह्मचारी ही रहते है। उनकी गणना अनि उत्तम देवो मे की जाती है। उनके भी रहने के अनेक विमान है। उनमे गजा, मन्त्री, प्रजा आदि भेद, नही हैं । सभी अपने आपको इन्द्र मानते है। इसी से वे 'अहमिन्द्र कहलाते हैं । इनका भी समय पूरा हाने पर अन्य योनियो मे जाना पड़ता है। ___ इस अहमिन्द्रलोक से ऊपर शिवलोक' है ! वहां वे जीव
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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