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________________ १२ ZILLEL जैनधर्म में जीवों का परलोक "कल्याण" के पुनर्जन्म विशेषांक से उद्धृत ( जनवरी १६६६ ) अनेक योनियो में पुण्यपाप के पल। कहलाता है । इस जिस धर्म का यह सिद्धान्त हो कि जन्म-मरण प्राप्त करके ये जीव अपने किये को भोगते रहते है वह धर्म आस्तिक धर्म' टि से जैनधर्म भी एक आस्तिक धर्म है। उसका कहना है कि समस्त ससारी जीवों का अस्तित्व नारकी, देव तिर्यंच (पशु, पक्षी कीडे) और मनुष्य - इन चार भेदो मे पाया जाता है । इन्हें ही चार गतियाँ कहते है अर्थात् ससारी जीवो का आवा गमन सदा इन चार स्थानों में होता रहता है। हर एक गति के जीवो की अपनी अलग-अलग आयु होती है । जितनी जिसकी आयु होती है, उतने ही काल तक वह उस गति मे रहता है । तिर्यंच और मनुष्य कारणवश अपनी निर्धारित आयु से पहले भी मर जाते हैं, जिसे 'अकाल-मरण' कहते हैं । नरक और देवगति मैं अकालमरण नही होता है। मरने के बाद वह जीव अपनी अच्छी-बुरी करनी के फल से या तो उसी गति मे, जिसमे कि 'वह मरा है, फिर से जन्म लेता है, या अभ्याम्य गतियों मे जन्म लेना है । किन्तु नरक और देवगति के जीव लौटकर पुन, अपनी 'उसी गति मे जन्म नही लेते है. अन्य गतियों मे जाने के बाद
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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