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________________ १२० ] [ * जैन निबन्ध रत्नावली भाग २ अर्थ-चतुर्मास के अलावा हेमतादि ऋतुओ मे मुनि लोग एक स्थान में एक मास तक ठहर सकते है। आषाढ मास मे श्रमण संघ वर्षायोग स्थान को चला जाये और मगमिर का महीना बीतते ही वर्षायोग स्थान को छोड़ दे। यदि आषाढ के महीने मे वर्षायोग स्थान मे न पहुच सके तो कारणवश भी श्रावणकृष्णा चतुर्थी का उल्लघन न करे । अर्थात् जहाँ चातुर्मास करना हो उस स्थान मे श्रावण कृष्णा चौथ तक अवश्य र पहुच जावे । तथा कार्तिक शुक्ला पचमी के पहिले प्रयोजनवश भी वर्षायोग स्थान को न छोड़े । वर्षायोग के ग्रहण विसर्जन का जो समय यहाँ बताया गया है उसका दुवार उपसर्गादि के कारण यदि उल्लघन करना पड़े तो उसका प्रायश्चित्त लेवे । योगांतेऽर्कोदये सिद्धनिर्वाणगुरुशान्तय ।। प्रणुत्या वीरनिर्वाणे कृत्यातो नित्यवदना ॥७॥ । अर्थ- कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की रात्रि के चौथे पहर में वर्षायोग का निष्ठापन किया जाता है। जैसा कि ऊपर लिखा है । यही समय भगवान महावीर के निर्वाण का आ जाता है। इसलिए वर्षायोग के निष्ठापन के मनन्तर सूर्योदय हो जाने पर वीर निर्वाण क्रिया करे । उसमें सिद्धभक्ति निर्वाणभक्ति गुरुभक्ति और शातिभक्ति करे। इसके बाद नित्यवदना करे। __ आशाधर के इस कथन से प्रकट होता है कि-वर्षायोग ममाप्ति का क्रिया विधान तो कार्तिक कृष्णा १४ की रात्रि के पिछले भाग मे ही कर लिया जाता है। परन्तु उसके अनन्तर ही उस स्थान को छोडकर अन्यत्र विहार नही किया जाता है। कम से कम कार्तिक शुक्ला ५ तक तो उसी स्थान मे रहना
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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