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________________ चामुण्डराय का चारित्रसार दिगबर जैन समाज मे "चारित्रसार" नामक ग्रन्थ के रचयिता चामुण्डराय समझे जाते हैं। ग्रन्थ के परिसमाप्तिसूचक गद्य से भी यही ध्वनित होता है। किन्तु ग्रन्थ की हालत को देखते हुए चामुण्डराय को उसका निर्माता नहीं कह सकते। अधिक से अ धक हम उन्हे सग्रहकर्ता कह सकते हैं। निर्माता और सग्रहकर्ती मे भेद है। निर्माता वह होता है जो ग्रन्थ की शाब्दिक रचना का अपनी बुद्धि से प्रणयन करता है। किन्तु संग्रहकर्ता मे यह बात नहीं है। वह दूसरो के रचित वाक्यो को सचित कर उसका कोई नया नाम धर देता है । 'चारित्रसार' की भी प्राय. यही हालत है । यद्यपि धर्मशास्त्र नये नही बना करते। परम्परा से जो वाडमय चला आता है उसी के अनुसार कथन उनमे रहता है और प्रामाणिक भी वे तभी माने जाते हैं। लेकिन यह बात उनके अर्थ के सबध मे है। शब्द से तो वे भी नये बनते हैं। प्राचीन गूढ अर्थ को स्पष्ट करना और अपने शब्दो मे कहना यही नवीन धर्मशास्त्रकारो का काम होता है। इस प्रकार को नवीन कृतियो मे कही कही प्राचीन मागमो के व क्य भी बिना उक्त च लिखे ज्यो के त्यो उद्धृत कर लिए जाते हैं। जैसा कि सर्वार्थसिद्धि के वाक्य राजवार्तिक मे और राजवार्तिक के वाक्य श्लाकवार्तिक मे पाये जाते है। किन्तु इनके कर्ताओ ने जितना कुछ दूसरी से लिया है उससे कई गुणा अपनी बुद्धि से बनाकर रक्खा है। इसलिए ऐसो को तो ग्रन्थकर्ता ही कहने चाहिए। पर जो ग्रन्थ का बहुभाग या
SR No.010107
Book TitleJain Nibandh Ratnavali 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMilapchand Katariya
PublisherBharatiya Digambar Jain Sahitya
Publication Year1990
Total Pages685
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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