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________________ बत धावन न करना तवा दिन में एक बार भोजन करना, ये साप के माइस मूल नग हैं। इनका परिपालन मुनि चारित्र्य का स्वभाव है। बोसवीं शताम्बि के कविवर श्री हेमराज विरचित 'श्री गुरुपूजा' नामक काय की जयमाल-अंग में साधु की चारित्रिक चर्या का यशगान करते हुए कवि ने अठ्ठाइस मूल गुणों का उल्लेख किया है। इन गुणों के नित्य चिन्सबन करने से कल्याण-मार्ग प्रशस्त होता है।' विवेच्य जन हिन्दी पूजा काव्य में अभिव्यक्त ज्ञान विषयक सम्पदा का अनुचितन करने से लगता है कि जीव अथवा आत्मा एक अत्यन्त परोक पदार्थ हैं । संसार के सभी वार्शनिकों ने इसे तक से सिद्ध करने की चेष्टा को है। स्वर्ग, नरक, मुक्ति आदि अति परोक्ष पदार्थों का मानना भी आत्मा के अस्तित्व पर ही आधारित है । आत्मा न हो तो इन पदार्थों के मानने का कोई प्रयोजन नहीं है यही कारण है कि जीव के स्वतन्त्र अस्तित्व का निषेध करने वाला चार्वाक इन पदार्थों के अस्तित्व को पूर्णतः अस्वीकार करता है। आत्मा का निषेध सारे शान-काण्ड और क्रिया-काण्ड के निषेध का एक अघ्रान्त प्रमाण पत्र है । पारलौकिक जीवन से निरपेक्ष लौकिक जीवन को समुन्नत और सुखकर बनाने के लिये भी यद्यपि ज्ञानाचार और क्रियाचार को १. अहिसा दीणि उत्ताणि महब्वयाणि पंच य । समिदीओ तदो पंच-पंच इंदियणिग्ग हो। छन्भेयावास भूसिज्जा अण्हाणत्त चेल दा । लोयतं ठिदि भुत्ति च अदंत धावणमेव य ।। -कुन्द-कुन्द-प्राभूत संग्रह, भक्ति अधिकार, कुन्दकुन्दाचार्य जनसंस्कृति संरक्षक संघ, शोलापुर, प्रथम संस्करण, सन १६६०, गाथांक ५ तथा ६, पृष्ठांक १६१ । २. पच्चीसों भावन नित भावें, छब्बिस अंग-उपंग पढे । सत्ताईसों विषय विनाशें, अट्ठाईसो गुण सूपढे ॥ शीत समय सर चोहटवासी, ग्रीषमगिरि शिर जोग धर । वर्षा वृक्ष तरें थिर ठाढे, आठ करम हनि सिद्ध वरं ।। -श्री गुरुपूजा, हेमराज, बृहद् जिनवाणी संग्रह, पंचम अध्याय, सम्पादकप्रकाशक-पन्नालाल बाकलीवाल, मदनगज, किशनगढ़, राजस्थान, सन् १६५६, पृष्ठ ३१३ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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