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________________ ( ५१ ) इस प्रकार पंच-समिति पूर्वक प्रवृत्तिकर्ता के असंयम के निमित्त से आने वाले कर्मों का अब अर्थात् प्रवेश बन्ध नहीं होता है ।" aorrnal और उझोनों शती में रचित जैन-हिन्दी-पूजा-काव्य में समिति का सफलतापूर्वक प्रयोग हुआ है । अठारहवीं शती के कविवर धानतराय कृत 'श्री चारित्र पूजा' में पंचसमिति का व्यवहार हुआ है।" उन्नोसबों शती के कविवर रामचन्द्र द्वारा रचित 'श्री पुष्पदन्त जिनपूजा' काव्य में पंचसमिति का प्रयोग उल्लिखित है।' 'श्री अजितनाथ जिनपूजा' काव्य के जयमाल प्रसंग में पंचसमिति के पालक प्रभु जिनेन्द्र देव को वन्दना व्यक्त हुई है।" बीसवीं शती के जैन- हिन्दी- पूजा- काव्य में समिति का प्रयोग प्रायः नहीं मिलता है । आत्मशुद्धि तथा निर्मल जीवनचर्या के लिए समिति की भाँति कषाय का ज्ञानपूर्वक व्यवहार परमावश्यक है। जैन दर्शनानुसार जो आत्मा के क्षमा आदि गुणों का घात करे, उसे कषाय कहते हैं। कवाय भेद की दृष्टि से चार प्रकार की कषाय उल्लिखित है। यथा - १ इत्यं प्रवर्तमानस्य न कर्माण्यास्रवन्ति हि । असंयम निमित्तानि ततो भवति संवरः. ॥ -- तत्वार्थसार, षष्ठाधिकार, श्रीमद् अमृतचन्द्र सूरि, श्री गणेशप्रसाद वर्णी ग्रन्थमाला, डुमराव बाग, अस्सी, वाराणसी ५, प्र० सं० १६७०, पृष्ठ १६३ । २. पच समिति त्रय गुपतिग हीजै । नरभव सफल करहु तन छीजे ॥ श्री चारित्र पूजा, द्यानतराय, राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटल वर्क्स, अलीगढ़, प्रथम संस्करण १९७६, पृष्ठ १६६ / ३. तीन गुपति व्रत पंच महापन समिति ही । द्वादश तप उपदेश सुधारे सन्त ही ॥ -श्री पुष्पदन्त जिनपूजा, रामचन्द्र जैन ग्रन्थ कार्यालय, मदनगंज, किशनगढ़, सं० १९५१, पृष्ठ ७५ । ४. जय पंच समिति पालक जिनन्द । त्रय गुप्ति करन वसि धरम कन्द ॥ -श्री अजितनाथ जिनपूजा, रामचन्द्र, पृष्ठ २८, वही । ५. तत्त्वसार, द्वितीयाधिकार, श्रीमंत अमृतचन्द्र सूरी, श्रीगणेशचन्द वर्णी ग्रन्थमाला, डुमराबबाग अस्सी, वाराणसी ५, प्रथम संस्करण १६७० ई० ; पृष्ठांक. ३२ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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