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________________ ( ४८ ) मिलता है ।" भुत भक्ति के माध्यम से सम्पूर्ण भूत-सम्पदा उपलब्ध होती है। " प्रवचन-मक्ति के चितवन द्वारा परमानन्द की प्राप्ति होती है ।' षट् आवश्यक भावना के चिन्तवन करने से रत्नत्रय का सुफल योग प्राप्त होता है ।" धर्म-प्रभावना करने पर शिव-मार्ग का सम्यक परिचय हो जाता है।* वात्सल्य भावना के चिन्तवन द्वारा तोयंकर पश्वी प्राप्त होती है ।" after का कहना है कि सोलह भावनाओं का व्रतपूर्वक शुभ चिन्तवन करने पर इन्द्र-नरेन्द्र द्वारा समादर तथा पूजक को अन्ततोगत्वा शिव-पद की १. जो आचारज भगति करें हैं। सो निरमल आचार धरे हैं || - श्री सोलह कारण पूजा, द्यानतराय, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह पृष्ठ १७७ । २. बहु श्रुतवत भगति जो करई । सो नर सम्पूरन श्रुति धरई ॥ -श्री सोलह कारण पूजा, द्यानतराय, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटल वर्क्स, अलीगढ़, पृष्ठ १७७ 1 ३. प्रवचन भगति करे जो ज्ञाता । लहे शान परमानन्द दाता || श्री सोलह कारण पूजा, द्यानतराय, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १७६ । ४. षट् आवश्यककार्य जो साधे । सो ही रत्नत्रय आराधे || -- श्री सोलह कारण पूजा, धानतराय, राजेश नित्यपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १७७ । ५. धरम प्रभाव करे जो ज्ञानी । सिन शिव मारग रीति पिछानी || - श्री सोलह कारण पूजा, यानतराय, राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, पृष्ठ १७७ । ६. वत्सल अंग सदा जो ध्यावं । सो तीर्थंकर पदवी पार्व ॥ - श्री सोलह कारण पूजा, पानतराय, राजेश नित्य पूजा पाठ संग्रह, पृष्ठ १७७ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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