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________________ ( ३८ ) के कविवर होराचन्द्र कृत 'श्री चतुर्विंशति तीर्थकर समुन्वय पूजा' में तीर्थंकर धर्मनाथ को दश लक्षण धारी कहा है ।" कविवर भगवानदास कृत 'भी Heard पूजा में क्शधर्म द्वारा इस हस-प्राण का तिरजाना उल्लिखित है।" इस प्रकार इस दश लक्षण धर्म की उपयोगिता स्पष्ट हो जाती है । fader काव्य में अभिव्यक्त ज्ञान-सम्पदा में समवशरण को अभिव्यंजना वस्तुतः अद्वितीय है। समवशरण यौगिक शब्द है । समवस्थानं शरणं आश्रय स्थलं समवशरणम् अर्थात् सम्यक् प्रकार से बैठे हुए समस्त प्राणियों की आश्रय स्थलो । अहंत् भगवान् के उपदेश देने की सभा का नाम समवशरण कहलाता है, जहाँ बैठकर तिर्यच, मनुष्य व देव पुरुष व स्त्रियाँ सब उनकी अमृत वाणी से कर्ण तृप्त करते हैं। इसकी रचना विशेष प्रकार से देव-गण किया करते हैं। इसकी प्रथम सात भूमियों में बड़ी आकर्षक रचनाएँ, नाट्यशालाएँ, पुण्य-वाटिकाएँ वापियाँ, चैत्यवृक्ष आदि होते हैं । मिथ्या दृष्टि अभव्य जन अधिकतर इसकी शोभा देखने में उलझ जाते है । अत्यन्त भावुक व श्रद्धालु व्यक्ति ही अष्टम भूमि में प्रवेश कर साक्षात् भगवान् के दर्शन तथा उनकी अमृतवाणी से नेत्र, कान तथा जीवन सफल करते हैं ।' समवशरण के माहात्म्य विषयक विवेचन करते हुए 'तिलोपपण्णति' नामक प्राकृत महाग्रन्थ में कहा गया है कि एक-एक समवशरण में पल्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण विविध प्रकार के जीव जिनदेव की वन्दना में प्रवृत उपकारी, धारी । १. धर्मनाथ हो जग रत्नत्रय दशलक्षण शान्तिनाथ शान्ति के करता, दु:ख शोकमय आदिक हरता ॥ - श्री चतुर्विंशतितीर्थकर सम्मुच्चय पूजा, हीराचन्द्र, नित्य नियम विशेष पूजन संग्रह, वि० जैन उदासीन आश्रम, ईसरी बाजार, हजारीबाग, वीर सं० २४८७, पृष्ठ ७६ । २. अति मानसरोवर झील बरा, करुणारस पूरित नीर भरा । दश धर्म बहे शुभ हंसतरा, प्रणमामि सूत्र जिनवानि वरा ॥ - श्री तत्वार्थ सूत्रपूजा, भगवानदास, श्री जैन पूजापाठ संग्रह, ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ ४१२ । ३. जैनेन्द्र सिकान्त कोश, भाव ४, ३० जिनेन्द्र वर्णी, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण १९७३, पृष्ठ ३३० १
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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