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________________ ( २६ ) 'विनवूया' में फाल्गुण कृष्णा एकादशी को प्रभु केवलज्ञान से सम्पन हुए लिखित है। केवल ज्ञानोपलब्धि पर इन्द्र द्वारा पूजा-अर्जन का उमेद कवि द्वारा हुआ है।' 'श्री खण्डगिरि क्षेत्रपूजा' काव्य में कविवर मुलाबाल बुद्धर तपश्चरण करने के उपरान्त केवल ज्ञान प्राप्त करने की चर्चा करते हैं, केवल ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् इन्द्र द्वारा प्रभु-पूजा करने का प्रसंग काव्य क सफलतापूर्वक व्यंजित किया गया है।" अन्य मनुष्यों तथा केवलियों की अपेक्षा तीर्थकरों में छियालीस गुणों का समावेश होता है । इन छियालीस गुणों को निम्न वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। यथा- १. अनन्त चतुष्टय २. चौतीस अतिशय ३. आठ प्रातिहार्य अनन्त दर्शन, अनन्त ज्ञान, अनन्त वीर्य तथा अनन्त सुख-विषयक विवेचन किया जा चुका है। चौंतीस अतिशयों का विवेचन करना अपेक्षित है । भगवान के चौंतीस अतिशयों को विषय-बोध के आधार पर तीन भागों में विभाजित किया गया है । यथा १. जन्म के दश अतिशय । २. ३. देवकृत तेरह अतिशय । केवल ज्ञान के ग्यारह अतिशय । १. फाल्गुण वदि एकादशी, उपज्यों केवल ज्ञान । इन्द्र आय पूजा करी, मैं पूजों इह थान ॥ - श्री आदिनाथ जिनपूजा, सेवक, श्री जैन पूजा पाठ संग्रह, ६२, नलिनी सेठ रोड कलकत्ता-७, पृष्ठ ६७ । २. इस विधि तप दुद्धर करन्त जोय, सौ उपजे केवल ज्ञान सोय | सब इन्द्र आज अति भक्ति धार । पूजा कीनी आनन्द धार । - श्री खण्डगिरि क्षेत्रपूजा, मुन्नालाल, श्री जैन पूजापाठ संग्रह, ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता-७, पृष्ठ १५८ । ३. बृहद् जैन शब्दार्णव, भाग २, मास्टर बिहारीलाल अमरोहा, मूलचन्द्र feature कापड़िया पुस्तकालय, सूरत, सं० २४६०, पृष्ठ ५६६ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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