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________________ ( २१ ) कर्म का नाश होता है ।' अन्तराय कर्मोदय से दान, लाभ, वीर्य आदि प्रसंगों में भी जीव इनसे प्रायः विहीन रहता है। उपासना द्वारा इस कर्म का नाश सहज में हो जाता है ।" इसी प्रकार कर्म-विरत होने के लिए उत्तीसवीं शती के कविवर मनरंगलाल कृत श्री शीतलनाथ पूजा में तथा कविवर वृन्दावनदास विरचित श्री महावीर स्वामी पूजा में पूजोपासना का उल्लेख किया है। बीसवीं शती में कविवर पूरनमल द्वारा रचित श्री महावीर स्वामी पूजा में तथा कविवर मुन्नालाल कृत श्री खण्डगिरि क्षेत्रपूजा में अष्टकर्म नाश करने का उल्लेल हुआ है। १. ऊँच-नीच दो गोत्र, नाश अगुरुलघु गुण भए । द्यानत आतम जोत, सिद्ध शुद्ध बदो सदा ॥ - श्री बृहत् सिद्धचक्र पूजा भाषा, द्यानतराय, बड़ी पृष्ठ २४२ । २. भूप दिलाबे द्रव्य को, भण्डारी दे नाहि । होन देय नहिं सम्पदा, अन्तराय जगमाहिं || मोन, उपभोग, इस प्रकार सिद्ध - श्री बृहत् सिद्धचक्र पूजा भाषा, द्यानतराय, वही पृष्ठ २४३ । ३. अन्तराय पांचौ हते, प्रगट्यो सुबल अनन्त । द्यानत सिद्ध नमीं सदा, ज्यों पाऊँ भव अन्त ॥ - श्री बृहत् सिद्ध पूजा भाषा, द्यानतराय, श्री जैन पूजापाठ संग्रह, ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता ७, पृष्ठ २४३ ॥ ४. जे अष्ट कर्म महान अतिबल घेरि, मो चेरा कियो । तिन केर नाश विचार के ले, धूप प्रभु ढिंग क्षेपियो ॥ - श्री शीतलनाथ पूजा, मनरंगलाल, सत्यार्थ यज्ञ, जवाहरगंज, जबलपुर, म०प्र०, चतुर्थ संस्करण, सन् १९५०, पृष्ठ ७५ । ५. हरिचन्दन अगर कूपर, चूर सुगंध करा । तुम पद तर खेंबत भूरि, आठों कर्म जरा ॥ श्री महावीर स्वामी पूजा, वृन्दावन, राजेश नित्यपूजा पाठ संग्रह, राजेन्द्र मेटल बबर्स, अलीगढ़, प्रथम संस्करण १९७६, पृष्ठ १३४ । ६. अष्ट- कर्म के दहन को, पूजा रची विशाल । पढ़े सुनें जो भाव से छूटे जग जंजाल ।। - श्री महावीर स्वामी पूजा, पूरनमल, श्री जैन पूजापाठ संग्रह, ६२, नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता- ७ पृष्ठ १६४ । ७. अष्ट-कर्म कर नष्ट मोक्षगामी भए । तिनके पूजहुँ चरन सकल मंगल ठए । - श्री खण्डगिरि क्षेत्रपूजा, मुन्नालाल, श्री जैन पूजा पाठ संग्रह, ६२; नलिनी सेठ रोड, कलकत्ता ७, पृष्ठ १५५ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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