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________________ ( १५१ ) 'श्री बृहत् सा माया' नामक रचना में वर्डस्वर के लिए परि सति है ।" गाय - यह उपयोगी तथा सामाजिक पशु-धान है। यह अपनी उपयोगिता के लिए समास है। हिन्दी बाहमय में गाय का प्रयोग मालंकारिक तथा दुग्ध प्रदान करने वाले पशुओं में उल्लेखनीय है । जैन - हिन्दी-पूजा-काव्य में उन्नीसवीं शती से इस पशु का प्रयोग मिलता है । इस शती के पूजा कवयिता मनरंगलाल द्वारा प्रणीत 'श्री नेमिनाथ जिनपूजा' नामक कृति में गाय के घृत के लिए इसका प्रयोग हुआ है ।" deaf शती के gorefa पूरणमल ने गाय का प्रयोग कामधेनु संज्ञा के रूप में 'श्री चांदनपुर गाँव महावीर स्वामीपूजा' नामक पूजा रचना में सर्व प्रकार की एवजातृप्ति करने के साधन के लिए किया है ।" घोड़ा - वह शक्ति-बोधक पशु है। इस पशु के अन्य पशुओं को भौति सींग नहीं होते । यह काला, लाल, सफेद रंगों में प्राय: पाया जाता है । हिन्दी काव्य में बाल, शक्ति तथा धन के लिए 'घोड़ा' पशु का प्रयोग परिलक्षित है। जंग-हिन्दी- पूजा- काव्य में उम्मीसवीं शती के इस पशु का उल्लेख मिलता है। इस शती के पूजाकवि रामचन्द्र प्रणीत 'श्री चन्द्रप्रभु पूजा' नामक पूजाकृति में घोटक संज्ञा का प्रयोग सवारी के लिए हुआ है ।" १. सुस्वर उदय कोकिलावानी, स्वर गर्दभ-ध्वनि समजानी । —श्री बृहद सिद्धचक्र पूजाभाषा, धानतराय, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ २४२ । २. पकान्नपूरित गाय घृत सों, मधुर मेवा वासितं । -श्री नेमिनाथ जिमपूजा, मनरंगलाल, ज्ञानपीठ पूजांजलि, पृष्ठ ३६६ । ३. जहाँ कामधेनु नित नाय दुग्ध जु बरसावे । तुम चरणनि वरलन होत माकुलता जाये || - श्री चांदन गांद महावीर स्वामी पूजा, पूरणमल, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १६१ । ४. हस्ती चोटक बेल, महिद सवारी धायो । -श्री - रामचन्द्र, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह पृष्ठ १५ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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