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________________ और भग' बालंकारिक एवं प्रति प्रसंग में तथा उनीसवीं में नाग', उरण, धनिय, पद्मावती प्राकृतिक-प्रसंग में सहायक बनकर और बीसवीं सती में विवधर, नाप नामक संभावों के साप प्राकृतिक एवं मालंकारिक म में व्यवहत है। ऊंट-यह मारवाही पर है। मरुभूमि में यात्रा के लिए प्रायः उपयोपी पर है। इसकी गर्दन अपेक्षाकृत अन्य पशुओं से लम्बी मोर बड़ी होती है। हिन्दी के बारहमासा साहित्य में ट का वर्णन मुहावरा के प्रयोग में वर्णित है। १. भद्रबाह पनि के करता, श्री मुजंग भुजंगम भरता। - श्री बीस तीपंकर पूजा, बानतराय, जनपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १५ । २. भयो तब कोप कहे कित पीर, जले तब नाग दिखाय सजोष । -श्री पारवनाथ जिनपूजा, बख्तावररत्न, राजेश नित्यपूजा पाठ संग्रह, पृष्ठ १२२ । ३. जय अजित गये शिव हनि कर्म, जय पावं करो जुग उरग समें । -~श्री सम्मेदशिखरपूजा, रामचंद्र, जनपूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १३६ । ४. तबै पद्मावती कंथ धनिंद, चले जुग बाय तहां जिनचंद । -श्री पार्श्वनाथ जिनपूजा, बख्तावररत्न, राजेश नित्य पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १२६ । ६. विषधर बम्बी करि परनतल ऊपर बेल चढ़ी अनिवार। युगजंगा कटि का बेड़ि कर पहुंची बक्षस्थल परसार॥ -श्री बाहुबलीस्वामी पूजा, जिनेश्वरदास, जैन पूजापाठ संग्रह, पृष्ठ १७२। ७. रे ज्यों नाग गएको देखि। मजे गज जुत्य जुसिंहहि पेखि ॥ -श्री सम्मेदाचलपूजा, जवाहरलाल, बृहजिनवाणी संग्रह, पृष्ठ ४८२ । ८. बृहद हिन्दी कोश, पृष्ठ २१५) ६. हिन्दी का बारहमासा साहित्य: उसका इतिहास तथा बनायम, ग. महेन्द्र सापर प्रचंरिया, पृष्ठ २०७१
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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