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________________ ( १२ ) की आवश्यकता होती है। रूप किसी वस्तु के आकार पर निर्भर करता है ।" बिना आकार या रूप ग्रहण किए कोई भी अभिव्यक्ति न तो हो सकती है और न अभिव्यक्ति की संज्ञा ही पा सकती है। अभिव्यक्ति जिस रूप में सम्पन्न होती है वह रूप कालान्तर में काव्यरूप बन जाता है। पूजा एक सशक्त काव्यरूप है । -हिन्दी काव्य में प्रयुक्त काव्य रूपों को मूलत: दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है, यथा १. बच २. मुक्त aari में वर्णनात्मक तथा प्रबन्धात्मक काव्यरूप और मुक्त वर्ग में संख्या, छंद तथा विविध रूप में काव्यरूप रखे जा सकते हैं। जैन हिन्दी etail में प्रयुक्त छत्तीस वर्णनात्मक काव्य रूपों में पूजा काव्यरूप का स्थान सुरक्षित है। पूजा एक भक्त्यात्मक काव्यरूप है । इसके प्रथम प्रयोग का श्रेय जैन आचार्यों, मुनियों तथा कवियों को प्राप्त है। संस्कृत - प्राकृत तथा अप - भाषा साहित्य से होता हुआ यह काव्यरूप हिम्दी में अवतरित हुआ ।विशेष वर्ग और सम्प्रदाय में मौखिक और लिखित परम्परा में पूजाकाव्य रूप सुरक्षित रहा है, फलस्वरूप भाव-भाषा तथा कलात्मक समृद्धि के होते हुए. भी यह काव्यरूप काव्यशास्त्र के आचार्यों द्वारा उपेक्षित रहा है। पूजाकाव्य के लिखित रूप का विकासात्मक संक्षिप्त अध्ययन निम्न प्रकार से किया जा सकता है। विवेच्य काव्यरूप का व्यवस्थित स्वरूप पांचवीं शती में उपलब्ध होता है । माचार्य पूज्यपाद विरचित 'जैनाभिषेक' नामक काव्य में इस काव्य रूप के प्रथम दर्शन होते हैं। दशवीं शती के अभयनंदि कृतः योवधान तथा पूजाकल्प, आचार्य इन्द्रनंवि कृत अंकुरारोपण, ग्यारहवाँ शती के आचार्य मल्लिषेण विरचित वज्रपंजर विधान, पद्मावती कल्पःबारहवीं शती के पं० आशाधर कृत जिनयज्ञ कल्प, नित्य महोघोत, तेरहवीं १. हिन्दी साहित्य कोश, प्रथम भाग, सम्पादक डा० धीरेन्द्र वर्मा आदि, ज्ञानमण्डल लिमिटेड, बनारस, प्रथम संस्करण, संवत् २०१५, पृष्ठ ८४८६ २. जैन कवियों के हिन्दी काव्य का काव्यशास्त्रीय मूल्यांकन, आगरा विश्व-विद्यालय की १६७८ में डी० लिट्० उपाधि के लिए स्वीकृत शोध प्रबन्ध डा० महेन्द्र सागर प्रचंडिया, द्वितीय अध्याय, पृष्ठ ११-१२ ।
SR No.010103
Book TitleJain Hindi Puja Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAditya Prachandiya
PublisherJain Shodh Academy Aligadh
Publication Year1987
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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